Saturday 14 June 2014

वंशवृद्धि में लिए परिंदों ने, टापू में बनाई कालोनी



मेघ कुछ देर से सही पर,जन्म मरण का चक्र कहाँ रुकता है? पेड़ पर पत्ते बन परिंदों ने सुरक्षित ठिकाने पर अपनी अनोखी कालोनी बना ली है,इनमे कोई रंग भेद नहीं,काले कर्मेरेंट[पन कौवा है,सफेद इ ग्रेट याने सफ़ेद बड़े बगुले..और हैं-ओपन बिल स्टार्कजिसका बड़ा आकार देख प्रवासी सरस कहने कभी भूल करते हैं,,! परिंदों के कलरव से इस टापू में रौनक आ गई है !
ये कालोनी है अंग्रेजों दवारा बनाया गया खुटाघाट का निर्जन टापू चारों तरफ पानी,किले के समान महफूज़, बिलासपुर से कोई तीस किमी दूर,राह में माँ महामाया की नगरी रतनपुर जहाँ सदियों कलचुरियों ने राज किया,हर साल परिंदे इस टापू पर वंशवृद्धि करते है,,!

गर्मी के ये दिन अधिकांश परिंदे वंश बढ़ाते है, उनके अंडे के लिए जरूरी ताप मिलता है और चूजे निकने के लिए नमी भी. बारिश पिछड़ गई तो भी इस जलीय इलाके कई नमी काफी होगी.! जिससे उनके बच्चे अंडे में नहीं सूखते न निकलते समय छिलके से चिपकते ..!
वाह रहे कुदरत और तेरा निजाम ,,! जिनका कोई नहीं उनका रब होता है,जो इन जीवों को भी जरूरत पूरी करता है और महफूज रहने कई लिए अक्ल देता है ..!! हाँ एक और बात ये फोटो मुझे संजय शर्मा जी से मिली हैं जो इन दिनों राहुल सिंह जी के नक़्शे कदम पर कैमरा लिए चल रहे हैं..उनका आभार''!

Thursday 12 June 2014

विदेशी परिंदों की देश में बिक्री ..


वाईल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट केवल देश में पाए जाने वाले परिंदों के लिए लागू है,विदेशी पक्षी यदि किसी तरह कस्टम से पार हो गए तो उनकी बाजार में खरीद-फरोख्त हो सकती है.कानून इस पर लागू नहीं होता,यदि इसको पकड़ा भी जाये तो अदालत में मामला नहीं ठहरता, ये बात कल यहाँ TRAFFUIC india और अचानकमार टाइगर रिजर्व दवारा बिलासपुर में आयोजित 'कार्यशाला' में सामने आई,अब संसद में विदेशी परिंदों की खरीद फरोख्त रोकने नियम बनेगा ..! भारत में मलेशिया का काकातुआ तीस हजार की करीब और मकाऊ पैरट एक लाख रुपये के आसपास विक्रय होता है. जो बिलासपुर तक के बाजार में भी प्रदर्शित है ..नाट फार सेल लिखा है उसके पास ..! बड़ा अजीब है जिसकी तस्करी अवैध उसका प्रदर्शन और भारत मैं उसकी खरीद फरोख्त कैसे हो सकती है ..? 

वन्यप्राणी कानून 1972 में लागू हो गया और विदेशी परिंदे अब तक तस्करी कर लाये और ऊँची कीमत में बाज़ार में खरीदे बेचे जाते है,,! इनकी आड़ में देसी भी .! चलता है,,की मनासिंकता ने ये सब चलने दिया है,,न जाने कब कानून बनेगा और कब परिंदों को मुक्ति मिलेगी ..! विश्व में नौ हज़ार परिंदों की प्रजातियाँ है और भारत में तेरह सौ प्रजातियाँ पाई जाती है..! [पक्षी बचाईये,फोटो गूगल से]

Thursday 5 June 2014

साल बीज का रेट बढ़ा, जंगल के लिए घातक



सरकार ने साल- सरई बीज की खरीदी का समर्थन मूल्य पांच रूपये किलो से दस रूपये किलो क़र दिया है,इससे साल [शोरिया रोबस्टा] के बीज जमा करने वाले आदिवासियों को दूना लाभ होगा ,,है न अच्छे दिन आने वाले हैं ..?
लगता है हाँ, बीज जमा करने वाले आदिवासियों के दिन फिर जायेगे .नवभारत में कल प्रकाशित खबर के अनुसार अब इसकी खरीदी कोई भी कर सकता है,,याने और अधिक भाव मिलेगा ..!

पर पर्यावरण के लिए ये बड़ा घातक है..! साल छतीसगढ़ का राजकीय पेड़ है.ये पेड़ न केवल मजबूत होता है अपितु जंगल को सदाबाहर बनाये रखता है..! साल के जंगल और ऊँचे पेड़ो पर कविता लिखी गई हैं ..!
साल का पेड़ सौ साल में तैयार होता है,फिर वो सौ साल खड़ा रहता है,और इसकी इमारती लकड़ी सौ साल तक टिकाऊ रहती है..! इसलिए ये हर दृष्टि से महत्वपूर्ण है..! साल के पेड़ वन्यजीवों को आश्रय देते है और जल संचय करते हैं..! पर अगर इसके बीजों को है बंटोर कर कारखानों का कच्चा माल बना दिया जाये और 'केक; बनकर निर्यात किया जाये तो फिर नये पेड़ कैसे उगेंगे..? इस और सरकार जाना के भी अनजान बनी है..!


सभी जानते है साल के पेड़ों पर गाहे-बगाहे बोरर का हमला होता है और लाखों पेड़ काट दिए जाते है जिससे बोरर का फैलाव पर काबू पाया जाये..छतीसगढ़ राज्य बनाने के पहले बिलासपुर में बीआर यादव के प्रयास से साल अनुसन्धान केंद्र की स्थापना हो सकी थी, इस केंद्र ने पाया की साल के बीज पहली बारिश की फुहार के साथ हवा में उड़ाते हर नीचे गिरते है और उनका अंकुरण अवधि कुछ दिनों की ही होती है ,,इसलिए इनकी नर्सरी तैयार नहीं हो पाती है..! याने ये प्राकृतिक जंगल है और हम इनको नहीं बढ़ा सकते ..! जल स्तर के नीचे जाने के कारण साल के पेड़ सूखन का शिकार हो रहे हैं..!
साल जंगल की ठंडक भी गजब की होती है, मैंने कई बार चांदनी रात में इस पेड़ों से पानी टपकते देखा है ,,मानो कोई बरसात हो रही हो.. वनवासी इससे टपका कहते है. ये जंगल दूर दूर तक फैले है पर इनका वितान झीना होता जा रहा है.! इन दिनों साल के फूल आ चुके है और ये घूम घूम कर हवा के साथ गिरना शुरू हो रहे हैं ! 


हो सकता है कि बीजों के अधिक संग्रहण से कुछ आदिवासियों की ज्यादा पैसा मिले, उद्योगपति चांदी पीटे पर हम प्राकृतिक विरासत का विनाश कर बैठेगे ..!! ये तय है जब 

Sunday 1 June 2014

एलिफेंट शो की सम्भावना






स्थान - अचानकमार टाइगर रिजर्व का सिहावल सागर जो मनियारी नदी की उद्गम स्थली है,,
समय-संध्या पांच बजे. नौतपा का दिन 
राजनादगांव से पकड़ा गया उत्पाती युवा हाथी,राजू तपिश कम करने सिहावल सागर में स्नान क़र रहा है,उसके निकलने का वक्त हो गया है,महावत पुकार लगता हैं,राजू वापस आओ..पर राजू सूंड में पानी की फुहारा लगता है फिर गहराई में चला जाता है ..हर पुकार के साथ राजू दूर होता जाता है पानी से निकलने के नाम नहीं लेता..!
मुझ्रे बचपन याद आ गया,माँ बारिश के पानी में खेलने से मान करती तो हम दूर भाग जाते कहीं माँ आकर पकड़ न ले.!
मैंने महावत सीताराम से कहा- आखिर राजू कब निकले गया..?
वो बोला- अब ये उसकी मर्जी पर है ..
मैंने पूछा नाराज है क्या ?
वो बोला नाराज होता है तो उसे पुचकार के या कुछ खिला कर मना लेते हैं..
पर ये शाम को नहाने के मूड में सुन नहीं रहा..!
एटीआर में और सैलानी यहाँ हाथी राजू की जलक्रीड़ा उत्सुकता से देख रहे है,हाथी कुशल तैराक होते हैं.संध्या तक हाथी इस सागर में डुबकी लगा कर लहरें पैदा करते और सब हैरत से उसे देखते रहे,,! जब वापस में एटीआर के गेट पर पंहुचा तो डीऍफ़ओ हेमंत पाण्डेय मिल गये ..!
,इस समय एटीआर में चार हाथी हैं ..मैंने चर्चा में डीऍफ़ओ से कहाँ, विदेश में डाल्फिन शो की भांति यहाँ एलिफेंट शो हो सकता है ..सारे सैलानी पार्क बंद होने के पहले सिहावल सागर पहुंचे और हाथियों की जलक्रीडा का लुत्फ़ ले ,अंत हाथी सूंड में पानी भर कर सैलानियों पर छिड़काव करे..इस फुहार की याद सैलानियों की जीवन भर याद रहेगी ..!
हेमंत पाण्डेय जी इस शो के बारे में जानते थे,अलबत्ता उसके मोबाईल में whatsapp में ये था,, उनको ये विचार पसंद आया कहा-हाथियों की इसके प्रशिक्षण में छह माह लगेंगे और अगली बार मानसून बाद जब एटीआर के दरवाजे सैलानियों के लिए खुलेंगे उसके बाद तक ये शो शुरू हो जायेगा ..!!