Sunday 31 August 2014

कुतिया माँ का दूध पी का बना शेर



''कौन मानेगा जिसकी माँ शेरनी ने अपने शावक को पैदा होने के बाद दूघ न पिलाया हो और कुतिया माँ के दूध पर पला हो वो बड़ा हो कर जब गरजेगा तो पूरे चिड़ियाघर में दहाड़ गूंजेगी, ये है- बिलासपुर के कानन पेंडारी जू का 'प्रिंस'..करीब पांच साल का है ओर ये शेर दो शावकों का पिता बन चुका है. इसे करीब से देखने में दहशत होती है,,!

इसकी माँ,यमुना और पिता सुलतान को कोरबा जिले में आये किसी सर्कस से यहाँ लाये गए थे, माँ ने पैदा होने के बाद जब शावक को दूध न पिलाया तब उसके लिए अलग कर 'गोल्डन रिटीवर' नस्ल की कुतिया माँ का इंतजाम किया गया,,उसका एक पिल्ला तब प्रिंस से उम्र में बड़ा था,कोई 45 दिनों में प्रिंस खेल में उसे पर भारी पड़ने लगा,अगले एक माह में उसकी ये माँ खेल में उससे थक जाती,,! तब तक ये मांस खाना सीख चुका था और फिर इस माँ को भी अलग कर दिया गया ,,!

प्रिंस आज भी जू कीपर रमेश साहू और सोनू यादव को पहचानता है और उनके दुलार का भूखा है,डिप्टी रेंजर ठा विश्वनाथ सिंह भी उसके बचपन का साथी है जिसे कैज के करीब देख वह दौड़ कर पास चला आता है. उनके सहलाने पर प्रिंस खुश होता है,उन्होंने बताया जब तक प्रिंस अपनी शेरनी से नहीं मिला था उसका बर्ताव हमसे बच्चे के समान था पर अब वो ' मर्द' है ओर बरताव बदल गया है,, वो दबंग हो चुका है ..लोग तो दूर से ही उसे देखते हैं,

[फोटो - उपलब्ध, जू के अधिकारी रेंजर श्रीजायसवाल से जो अच्छे फोटोग्राफर भी हैं]

Sunday 10 August 2014

जू की शान हिप्पोपोटोमस





'''बारिश के इन दिनों हिप्पो [हिप्पोपोटोमस] मुदित है,विशाल का नर 'गजनी' का परिवार टेंक के पानी में अटखेलियाँ करता है, जिसे बिलासपुर के कानन पेंडारी जू में जिज्ञासा से देखा जाता है.हिप्पो मूलतः अफ्रीकन है,पर ये नर-मादा दिल्ली के जू से लाये गए है, उनका एक बेटा भी जन्मा है..! ये बच्चा माँ सजनी ने पानी से बाहर कीचड़ में दिया और फिर एक दिन में वो पानी में चला गया ,,! इसका नाम रजनी दिया गया है ..!

हिप्पो करीब बारह फीट लम्बा,पांच फीट ऊँचा,चार टन भरी स्तनपायी, शाकाहारी जीव है, मुझे तो ये आसली भी लगा, पार्क के अधिकारी विश्वनाथ ठाकुर ने दूर हिप्पो गजनी कह कर बुलाया तो वो जमीं के नहीं आपितु पानी से तैर कर चला आया साथ उसका परिवार भी जानते थे खाने को कुछ मिलेगा,,! गर्मी के दिनों ये शाम पानी से बाहर आता या पानी में खेलता है, पर बारिश में ये अपने बाड़े में किनारे घास चरता है,,!

गर्मी के डर से पानी में रहने वाला ये जीव शांतिप्रिय है.धूप और ताप से इसके तन से वसा गुलाबी युक्त तरल बह निकालता है जो इन दिनों नहीं है..!
 (5 photo

Wednesday 6 August 2014

छातिम का जानलेवा पेड़ ..



स्वास्थ्य के लिए खतरनाक छातिम का पेड़ छतीसगढ़ में छा गया है,अब इसके लगाने पर सवाल उठ रहे है,छातिम को सतावन या सप्तपर्णी भी कहा जाता है..ये नाम इसकी सात या सात से आधिक पत्तों के साथ होने के वजह से है,अब ये माना जाने लगा है कि इसके हवा में उड़ते परागकण से मानव को श्वांस संबधित रोग होते है,सर्दी-खांसी भी इस वजह होती है,,!

राजधानी रायपुर में छातिम को उखड़ फेंकने का अधिकारीयों ने दावा किया गया है,लेकिन बिलासपुर शहर में ये गली-कूचों में लगा है,दीगर शहरों का भी यही हाल है,दरअसल ये पेड़ जल्द बढ़ता है,मवेशी नहीं खाते,और छायादार है,इस लिए सड़कों के किनारे कुछ सालों में सरकारी तौर पर इसे खूब लगाया है..! सरकारी बागीचे,सड़क के दोनों तरफ रेलवे का इलाका सब में छातिम छाया है ,! सुबह सैर करने गए और रोग ले आये..!


छातिम के कुछ तरफदार भी हैं,जो इसे औषधीय गुणों वाला भी बताते है,पर गुण क्या हैं ये नहीं बता पाते..! छतीसगढ़ के एक अख़बार ने तो इस पेड़ को देश के शहरी इलाके में बेन कहा है दूसरे ने इसे 'राक्षसी पेड़' बहरहाल इस पेड़ के फूल बरसात बाद आयेंगें,,! तब तक इसके भाग्य का फैसला हो जायेगा ,,! लेकिन जिन्होंने इसे बड़े पैमाने पर लगवाया है उनका कभी बाल बांका नहीं होगा,,![फोटो नेट से साभार]

Monday 4 August 2014

जू के साथ पक्षी विहार की सम्भावना




कहते हैं कुदरत एक हाथ से लेती है,तो दूजे दे देती है,बिलासपुर के काननपेंडारी जू में वन्यजीवों के मौत के बात कुदरत ने यहाँ पक्षियों का मेला भी लगाया है. वंशवृद्धि के लिए यहाँ पहुंचे ओपन बिल स्टार्क, कर्मोरेंट,विस्लर डक.और इग्रेट, रंग भेद,ऊंच-नीच के भावना से परे,पेड़ों पर कालोनी बना कर बड़ी संख्या में डेरा डालें हैं,,! इसके साथ कुदरती पक्षी विहार इस जू के साथ विकसित होने की संभावना उदित हो चुकी है. बस जरूरत है पहल की..!
पत्रकार विश्वेश ठाकरे और कैमरामेन उमेश मौर्य के साथ भरी बरसात मैं कानन पेंडारी गया था,शेरों के शावकों को देख रहे थे तभी . इस जुलाजिलपार्क के वन्यजीवों से दिल से जुड़े अधिकारी ठाकुर ने इस परिंदों के इस मेले की जानकारी दी,फिर क्या था, हम सबका रुख इस ओर था, रिमझिम फुहार के बीच पहले आकाश में बिजली चमकी और फिर गोले जैसी आवाज से बिजली कड़की,बड़ी संख्या में चिड़िया बसेरा छोड़ आकाश में उड़ चली, इतनी चिड़िया आकाश में उड़ती देख मैं बोला. अब बरसात में आगे नहीं जाते,चिड़िया तो उड़ गईं,पर श्री ठाकुर ने कहा- ये तो कुछ नहीं,चलिए वहां इससे ज्यादा पेड़ों पर होंगी, राह में पानी का सांप भी मछली की घात में दिखा,,!
जब तालाब के किनारे पहुंचे तो देखा, लगा मानों 'भरतपुर पक्षी विहार' के किसी कोने में हैं ,ये सारे पक्षी भारतीय है और स्थानीय प्रवास पर हैं, पर इसके आकार को देख न जाने क्यों प्रवासी विदेशी पक्षी माना लिया जाता है,,! चौमासा व्यतीत कर अपनी नई पीढ़ी के साथ ये उड़ जायेंगे,कुछ यहाँ रह जायेंगे ,,कुदरत ने तो मेला रच दिया ..अब कानन जू प्रबंधकों की बारी है,, करीब सात एकड़ के इस तालाब में शीतकालीन प्रवासी परिंदों को आकर्षित करने कुछ बत्तख यहाँ रखी जाए कुछ जलीय वनस्पति हो, परिंदों की सुरक्षा यहाँ है,यहाँ साल दर साल विदेशी परिंदे पहुँचने लगेंगे..ये इस क्षेत्र के तालाबों में हर साल आते है,पर ,उनकी संख्या और प्रवास के दिनों में कमी होती जा रही है,,वह भी कुछ परिमार्जित होगी..![फोटो- जितेन्द्र ठाकुर से]