Monday 28 December 2015

अरपा नदी में सुरखाब




''कसर न छोड़ी थी किसी ने, अरपा नदी को बर्बाद करने में,
रब ने रहम कर ''सुरखाब' के दो कंवल अरपा में खिला दिए..
जैसे अरपा नदी में दो कमल खिले हो दो सुरखाब मुझे कार से जल में विचरण करते दिखे, अपूर्व ने कार रोकी और राहुल जी और मैं कैमरे ले कर फोटो लेने जुट गए, तीस बसर बाद सुरखाब का
जोड़ा मुझे दिखा था, मैंने तो मान चला था, शीतकाल के ये में मेहमान परिंदे डिस्टर्ब हो कर विम बिलासपुर,.से विमुख हो चुके हैं.
इनकी रंग सुन्दरता का एक हो उदाहरण 'सुरखाब के पर लगे है क्या,इस मुहावरे से ही जाहिर होता है,,सहित्य से ले कर लोक मिथक में सुरखाब के जिक्र है. अक्सर ये जोडों में दिखते है,, इसलिए इनका नाम भी दोनों साथ भी है जैसे- चकवा-चकवी, गौना-गौनी,चक्रवाक-चक्रवाकी, कोक-कोकी, ये सारे दिन साथ रहते है और रात एक दूजे से अँधेरे में रह रह कर आवाज करते सम्पर्क में रहते है, मान्यता है ये जोड़ा नहीं बदलते,याने एक मरा तो दूजा वियोग में जान दे दे देता है, इसलिए एक नाम वियोगी भी हिंदी थिसारस में मिलाता है,
ये 66 सेमी ऊँची उड़ान भरने वाली बत्तक है जिसका अंग्रेजी नाम है- RUDDY SHELDUCK,
कुछ लेखक इसे प्रवासी मानते है, ये जलीय कीट मछली और सरीसृप खाती है, सामान्य; ये जाड़ो में दिखती है, दूसरी बार में राजेश अग्रवाल राजेश दुआ, दिनेश ठक्कर के साथ फिर इनको देखने गया वो सुरक्षित दूरी पर नदी में तैर रही थी... मेहमान सुरखाब तुम्हारा स्वागत है,,!!

Friday 11 December 2015

हरम की खोज में आये हाथी को उम्रकैद

"ये कहानी उस युवा हाथी की है जो अपने दल से बिछड़ कर मीलों दूर जंगल से गुजरता हुआ अचानकमार टाइगर रिजर्व इस उम्मीद से पहुंचा,कि यहाँ सिहावल सागर में एलिफेंट कैम्प के हथनी को संगनी बना कर हरम स्थापित कर लेगा, लेकिन उत्पाती हाथी घोषित कर उसे बंदी बना लिया गया है और अब ताउम्र कैद की सजा कटेगा।

ये नर हाथी सोलह साल से बीस साल की उम्र का है ।अचानकमार टाइगर रिजर्व छतीसगढ़ के मुंगेली जिले में बिलासपुर से कोई साठ किमी पर है । अभिलेखों के मुताबिक अविभजित मप्र के अंतिम हाथी मातीन से लोरमी तक बारिश में आते थे । पिछली सदी के दूसरे दशक तक इनकी संख्या तीन सौ थी । बाद ये हाथी कम होते गये ।
लेकिन 1992-93 में बिहार और उड़ीसा से हाथी फिर आने लगे । आपरेशन जम्बो" चला कर सरगुजा में कोई एक दर्जन उपद्रवी हथियो को पकड़ा गया ।


इनमें एक सिविलबहादुर अपने हरम के साथ सिहावल सागर में रखा गया ।इसमें हथनी लाली उनकी बेटी पूर्णिमा और बाद इस पकड़ा गया एक नर हाथी शामिल हो गया ।
हाथी उन विशेष तरंगों से बात करते हैं जो हमें सुनाई नहीं देती, पर मीलों दूर तक इसकी ध्वनि जाती है ।हाथियों की पारिवारिक व्यवस्था में इन्ब्रिडिंग" न हो इसलिए दल से युवा हाथी को खदेड़ दिया जाता है । जो बाद ताकतवर बन किसी दूसरे के हरम पर काबिज हो जाता है ।


हाँ तो हमारा ये युवा हाथी मीलों का रास्ता जंगल पहाड़ तय करता हुआ टाइगर रिजर्व पहुंच गया।और उसने अपने मौलिक ज्ञान से यह भी पता लगा लिया कि पालतू हो चुके हाथी कहाँ रहते है। कठिन राह में उसने उत्पात भीं किया। जिस वजह' लाली या 'पूर्णिमा के लिए आया ये हाथी बेहोश कर पकड़ लिया गया।
इस बीच युवा होने से पहले पूर्णिमा की मौत हो गई हैं जिसके कारण को जाँच हो रही है ।पता चला है पूर्णिमा की माँ लाली बीमार और कमजोर चल रही है । 


सैकड़ों किमी का , लम्बा सफर, हरम की खोज बाद इस आशिक की नियति में अब जीवन भर गुलामीलिखी है ।जिसमें उसे साधने के लिए इस हाथी को जटिल दुखद प्रकिया से गुजरना होगा ।
( फोटो- पत्रकार अमित मिश्रा की वाल से साभार)

Wednesday 18 November 2015

ब्लैक ड्रेंगो ने वल्चर को खदेड़ा .




छोटी चिड़िया ब्लैक ड्रेंगो के हौसले से घुसपैठी सफेद गिद्ध को इलाके से खदेड़ा-

काली हल्की-फुलकी भुजंगा [ब्लैक ड्रेंगो] के इलाके में दुर्लभ सफेद गिद्ध धूप का सेवन कर रहा था, तभी उसकी घुसपैठ पर ब्लैक ड्रेंगो ने हमला बोल दिया,बिलासपुर शहर के करीब उसलापुर स्टेशन के पास में कल सुबह इस गिद्ध की फोटो ले रहा था, तभी ये मंजर मुझे दिखा, उड़ कर बार बार ब्लैक ड्रेंगो उसके सर पर झपटी मरता और सफेद गिद्ध बचाव में सर झुका लेता.!

ब्लैक ड्रेंगो 26 सेमी का और सफ़ेद गिद्ध 65 सेमी का वजन में उससे चार गुना अधिक पर ब्लैक ड्रेंगो के सामने वो बचाव की मुद्रा में रहा, मैंने दूरी की फोटो लीं और जब मन भर गया.. दोनों को उनके हाल पर छोड़ आगे बढ़ गया करीब , अपनी एक दिन की इस उपलब्धि से खुश था. इसलिए जल्दी वापसी तय कर दस मिनट बाद जब लौटा तो देखा दूर सफेद गिद्ध उड़ा जा रहा है और ब्लैक ड्रेंगो पीछे इलाके से खदेड़ने में पीछे उड़ती जा रही है..! ये अब मेरे कैमरे के रेंज से दूर था! 

बहादुर ब्लैक ड्रेंगो को चिड़ियों का कोतवाल कहा जाता है, जहाँ ये घोंसला बनाती है वहां कमजोर दूसरी चिड़िया भी बस जाती हैं यदि कोई शिकारी पक्षी उधर आया तो ब्लैक ड्रेंगो उसकी खूब खबर लेती है,,,!

Sunday 2 August 2015

सिलिकान वेली मिली


 अचानकमार टाइगर रिजर्व से अमरकंटक की राह बंद करने की तैयारी है, इसके लिए रतनपुर केंदा केवंची या पेंड्रा होते हुए अमरकंटक जाने का रास्ता रहेगा,काफी बन चुका है और घाट का काम 'विलंबित' गति से चल रहा है,पेंड्रा से पहले इस घाट की चट्टानों को काटा गया है और इसके साथ 'सिलिकान वेली' प्रकट हो गई है ,,! 

इस बार बिलासपुर से अमरकंटक जाने के लिए इस रास्ते को चुना था, जब कार इस घाट के कच्चे रस्ते को पार कर रही थी तो नवभारत के पूर्व सम्पादक बजरंग केडिया की नजर चांदी-सोना से मिली चमकती इस पहाड़ी चट्टानों पर पड़ी, बच्चन सिंह ने कार रोकी, और मैंने कुछ फोटो लीं, अमरकंटक के इलाके में बाक्साइट की खान रही है.. और 'अबरक' भी सड़क पर बिखरा हुआ मिलता रहा है.. पर इस निर्माणाधीन राह में तो चमकीली अबरक [सिलिकान] की दूर तक चट्टानें बड़ी मोहक है..! ये चट्टानें किस वजह चमक रही है इसकी अंतिम पुष्टि बाकी है..! 

एक बात और राह तो ठीक बनी है.. पर इस घाट में जिस विलंबित गति दे काम हो रहा है. नहीं लगता की नवम्बर तक ये घाट बन पायेगा और 'अचानकमार टाइगर रिजर्व' की पांच बेरियर वाली राह बंद हो पायेगी ,,!
[फोटो पर क्लिक करके इस बड़े स्वरूप में देखिएगा ..!


Tuesday 7 July 2015

वनस्पति और जीव एक दूजे के लिए



विश्व में एक दूजे के लिए कुदरत ने जो बनाया है.. उसे समझने एक जीवन छोटा लगने लगा है, कल सुबह अपने फ़ार्म हॉउस गाँव मंगला  में मुझे 'एक दूजे के लिए' की एक नई जोड़ी से परिचय हुआ,,आप देखी, आप के साथ ,,,! कैसे वनस्पति और जीव एक दूसरे के लिए बने है ..

रात रानी रात खिली और सुबह कोई अनजान पतंगा, उसके फूलों का रस चूसने पहुंचा, न वो भौंरा था और न वो तितली, करीब ढाई इंच लम्बा, और एक इंच के पंखों का जोड़ा, छोटे पंख और भारी शरीर कहीं से वो उड़ने के काबिल नहीं.. कम से कम वायुगातिका के नियम से,,पर गजब की उड़न वो इन पंखों से आगे-दांये-बायें नहीं पीछे भी उड़ता और सामने छोटे से अंग से वो रातरानी के फूल के भीतर से कुछ रस लेता जाता,,! कोई आधे घंटे तक वो बिना रुके फूल-फूल तक उड़ता रहा..!

एक मिनट में बीस जगह कम से कम, फूलों तक जाता पंख का कुशल संचालन और गति इंतनी की दिखाई न दे,,कैमरे की गति कम पड़ गई ,,! फिर रंग भी रातरानी के रंग से मिलता जुलता हरा.. फोटो जो ली वो आपके समक्ष हैं, दोस्तों आप में कोई कीट वैज्ञानिक हो या इस खूबसूरत कीट के नाम से परिचित हो तो जरूर बतायें ..!!

Monday 22 June 2015

गिद्धों को बचना होगा

'ऊँचे आकाश पर उड़ान भरने वाले गिद्धओं को जू के पिंजरे में देख ये आशंका होना स्वाभाविक है कि दुर्लभ्य जीवों का अंतिम आशियाना क्या चिड़ियाघर ही होगा,,कम होते परिंदों को बचाने के लिए अब सभी जिलों में 'जिले का' एक पक्षी घोषित कर उसकी उसका संरक्षण जरूरी है. छ्तीसगढ़ के बिलासपुर के जू कानन पेंडारी में ये गिद्ध खुडिया; और लोरमी" के इलाके से कोई दो साल के दौरान लाये गये हैं, ये मुगेंली जिले में हैं, जहाँ और कुछ गिद्ध बताये जाते हैं ,,!!
लगभग 90 सेमी ऊँचे और मजबूत गिद्ध सफाई कर्मी है ,पर दो दशक में हुए ये दिखाना कम हो गए,बताया जाता है दुधारू मवेशियों को अधिक दूध देने लिए हार्मोन्स के इजेक्शन दिए जाते और फिर इन मवेशिओं के मरने के बाद गिद्ध ने उसे अपनी खुराक बना लेते.. जिस वजह इन हार्मोन्स के बचे असर से गिद्धों के अंडे से बच्चे नहीं निकते,गिद्ध काफी ऊँचे पड़े पर घोंसला बनते है.. अब ऊँचे और मजबूत पेड़ कम हो चले ! आज कम ही लोगो को याद है कि अंतिम बार गिद्ध कब देखा है ,,!!

जू में गिद्ध को चाल और सुन्दरता देखते बनती है,,कुछ दिनों हुए अचानकमार टाइगर रिजर्व का दफ्तर मुंगेली जिले के लोरमी में शुरू हुआ. बाघ और गिद्ध का नाता है, बाघ शिकार खाने के बाद जो बचा छोड़ जाता है वो गिद्धों का भोजन होता है ,,इस तरह उनकी इस सफाई कर्म से जंगल में वन्यजीवों में बीमारी नहीं फैलाती ..
आज वक्त है इस शानदार जटायू को बचाएँ कल फिर वक्त न होगा ,,

Wednesday 17 June 2015

गोह ने अपने को बचा रखा ..



गोह को बरसों बाद उसी स्थान पर विचरण करते देख आस बंधी की कुछ जीव छिप कर वजूद बनांये है, शहर से लगे मेरे कृषि प्रधान गाँव मंगला में अपने खेत जाते समय गोह [कॉमन इन्डियन मोनिटर लिजार्ड] और कुत्ते को आपस में खेलते देखा ,गोह पूंछ से वार करता और कुत्ता हट जाता.. दोनों किसी को हानि नहीं पहुंचा रहे थे ,, मुझे देख गोह झाड़ी में जा छिपा और कुता बाहर  खड़ा हो गया,..  फिर बरसों खेतों से लगभग कटा रहा लेकिन फोटोग्राफी के शौक ने फिर खेत पहुंचा दिया है..!

दो दिन हुए करीब उन्ही लेंटाना की झाड़ियों के पास मुझे एक गोह दिखा दिया, जब तक वो वापस जाता चार फोटो मिल गए, काफी साल पहले मैंने देखा साबरिया किस तरह गोह का शिकार सब्बल से खोद कर करते है,,एक बार देखा की गोह की पूँछ को उसके गले में बांध कोई शिकारी गोलाकार बनाये लाठी में डाल सात -आठ गोह लिए सड़क से जा रहा था ,,,सुना है कुछ लोग गोह को खाते हैं और चमड़े से चिकारा जैसा कोई वाद्ययंत्र बनाते थे ,,! गोह वन्य जीव अधिनियम में संरक्षित है पर इसकी संख्या में कमी हुई है, ये बात और है की मंगला गाँव में इसने अपने को बचा रखा है ,,!

इस बार गोह की फोटो के दौरान एक बात देखी जिसे शेयर कर रहा हूँ- इसकी चमड़ी में काफी झुर्री होती हैं, जिसका उपयोग ये शरीर का आकार बदलने में बखूबी करता है ,,मुझे ये बैठा दिखा,तब छोटा और मोटा दिखा,,, पर भागे समय ये लम्बा और पतला दिखा ,, शायद इसका उपयोग ये बिल में आने जाने वक्त करता होगा ,,सभी फोटो एक ही एंगल से ली गई है जिसमें भी बात जाहिर होती है ,,,!!

Wednesday 10 June 2015

मानसून का संदेशा चातक लाया ,

मानसून के पहुंचने में अब देर नहीं ।मानसून का दूत चातक ( Pied crested Cuckoo) जिसे पपीहा कहते हैं पहुंच चुका है। मानसून पहले की बारिश आज शाम बिलासपुर में हुई।
हर साल मई माह के अंतिम सप्ताह में आने वाला चातक आज सुबह 9 जून को मुझे बिलासपुर शहर के करीब गाँव मंगला में मेरे खेतों में पेड़ पर दिखा  और मैंने उसकी फोटो भी ली है ,,

आम तौर पर इसके छतीसगढ़ आगमन के बाद आठ दस दिन में बारिश शुरू हो जाती है। सलीम अली के अनुसार इसका प्रवास अधिकतर द.पू.मानसून पर निर्भर करता है । इसकी एक प्रजाति आफ्रिका से भी आती है । मेरी ये सोच है की मानसून का वेग और बारिश से बचाने ये अपनी यात्रा पूरी कर लेता है और मानसून कब आ रहा है ये उसको सहज  ज्ञान होता है .
पपीहा बादल देख पेड़ से पियू पियू की रट लगता है।इल्ली और छोटे फल इसकी आहार तालिका में शामिल हैं ।
बारिश के लिए उसकी इस रटन पर हिंदी साहित्य में काफी कुछ है।
हरिवंश बच्चन ने लिखा है-
ये वियोगी की लगन है ।
ये पपीहे की रटन है ।
कुछ इसे स्वाति बूंद की आस लिखते हैं।
कोयल के समान ये भी अपने अंडे नहीं सेता । बैब्लर पक्षी जिसे सतबहनी भी समूह में रहने के कारण कहा जाता वे  इसके अंडे सेते हैं । जो इधर काफी हैं. आम तौर  पर चातक नीची उड़ान भरता है पर  बारिश के अंत और शीतकाल में चातक अपनी वंशवृद्धि कर ऊँची उड़ान भरते वापस हो जायेगा।

Monday 11 May 2015

सफेद गिद्ध परिवार का दूसरा सदस्य मिला,




अब ये तय हो गया है कि छ्तीसगढ़ के कोटा [बिलासपुर] के इलाके में दुर्लभ सफेद गिद्ध [Egyptian Vultuer] अकेला नही, उसके परिवार का एक युवा और भी है ..बर्ड वाचिंग के लिए निकले हमारी टीम को कल ये दूर मैदान में बैठा दिखा, जिसकी फोटो भी ली गयी है, इसकी प्रजाति में युवा का रंग काला होता है और बाद उम्र के साथ वो पीला-सफेद हो जाता है,ये पंछी इस प्रक्रिया में गुजर रहा है ,! लगता है इस परिवार के कुछ सदस्य और भी होंगे ,,!

गिद्ध कम हो गए है,बीते माह एक सफेद गिद्ध की फोटो लेने में सफलता मिली थी,बाद उस इलाके में दो बार आकाश में उड़ते दिखा, कल संडे को जब हम उसके इलाके से गुजर रहे थे,तब जमीन पर बैठा युवा सफेद गिद्ध दिखा.सतर्कता से उसकी फोटो पंछी प्रेमी और जानकार राहुल सिंह,के अलावा श्याम कोरी 'उदय' ,अपूर्व सिसोदिया और मैंने लेने में कामयाबी पाई है.!
.
[इस पोस्ट में पहली दो फोटो कल दिखे सफेद गिद्ध की हैं, जो युवा अवस्था में होने के कारण काले पंखों का है,और बाद की दो फोटो, बीते माह में दिखे सफ़ेद गिद्ध की है..]

Thursday 23 April 2015

ह्रदय परिवर्तन ,शिकारी की हुई औलाद ,



पुनीलाल जाति से शिकारी है और बिलासपुर से सात किलोमीटर दूर गाँव जौकी में रहता है, इस माह जंगल से वापसी के दौरन मैं और श्याम कोरी 'उदय' चिड़ियों की फोटो खींचने उसके घर के पास रुके तब इससे पहचान हो गई और चर्चा में जो कहानी सामने आई अविकल ये है,,

पुनीलाल का विवाह चुका था और वो फन्दे से तीतर-बटेर पकड़ कर शहर में खाने के शौकीनों को बेचा करता था, शिकार को सधे बैल की से फंसाता और पंख तोड़ थैले में रखते जाता,,शादी के ग्यारह साल हो चुके थे. पर कोई औलाद न हुई,आखिर एक दिन कुलदेवी की पूजा करते हुए ये भान हुआ कि चिडियों के प्रति क्रूरता के कारण ही वो ये दुःख झेल रहा है,फिर उसने 'तीतर-बटेर' और दीगर परिंदों को पकड़ना छोड़ दिया.. अगले साल लड़का हो गया,, आज करीब 65 साल की उम्र में तीन लडके और एक लड़की का भरा-पूरा परिवार है जिसमें साथ नाती है,,!

इसमें विवाह कुछ जल्दी हो जाता है,पुनीलाल ने कहा- 'पेट ने नया रोजगार सिखाया' और और छीन्द पत्ते के चटाई-झाडू बनाने,लगा और उसके आंगन में तुलसी का पौधा है और गोदाम छींद की पत्तियों से भरा, किसी वन अधिकारी ने उसे राह दिखाई और मालवाहक ऑटो खरीद लिया जिससे वो छीन्द की पत्तियां बेलगहना से ले कर आता है..!! परिवार के लोग सब चटाई और झाडू बनाते है जिसका बाजार अच्छा है..! उसे परिंदों के प्रवासकाल का ज्ञान है, पर उनको पकड़ने से तीन तौबा की है,,एक टूटा जाल बीते अतीत की याद दिलाते पड़ा था जो फोटो में दिख रहा है..!!

Wednesday 25 March 2015

मेहमान परिंदों की सुरक्षा..



प्रवासकाल गुज़ार कर वापस जा रहे रोजी स्टारलिंग चिडियों को वन विभाग की सुरक्षा मिल गई ।कल संध्या इन परिंदों के आने से पहले वनविभाग के अमले ने गाँव बेलमुंडी में भीड़ को दूर से देखने की हिदायत दे दी । इसके पहले गाँव में मुनादी करा दी गई की गाँव में आने वाले इन मेहमानों  को  कोई  तंग  न करें !

शाम हजारों के झुण्ड में प्रवासी पक्षी आये और पुराने पीपल में बैठे और फिर साथ के तालाब में उगी एलिफेंटग्रास में महफूज़ रात गुजरने बैठते गये।हजारों की संख्या में उनकी वेग पूर्ण उड़ान और सांध्य का गीत मनोहारी था ।[ इस पोस्ट के पहले चित्र पर क्लिक कर देखिएगा पेड़ में पत्ते और चिड़िया में कौन अधिक हैं]

बेलमुंडी का ये उनका आदर्श मिलनस्थल है ।जहाँ ये एकत्र हो यूरोप पश्चिमी और मध्यएशिया को कूच करते हैं ।दो साल पूर्व इनको वापसी के दौरान देखने वालों से खलल पहुंचा जिस कारण ये बीते साल कुछ परिंदे आये थे ।इस साल जब सोशल मीडिया ने उनकी परेशानी से 

Saturday 21 March 2015

बार-नवापारा सेंचुरी जहाँ वन्यजीवों की कमी नहीं




यहाँ प्रकृति अपनी आदिम अवस्था में जीती है,244 वर्ग किमी के इस में सैलानी जैवविविधता और वन्यजीव जीवों की प्रचुर संख्या देख तृप्त हो जाता है,छत्तीसगढ़ के किसी अन्य अभयारण्य में इतने वन्यजीव नहीं दिखते,वो भी विविध प्रजातियों के..! 
इस सेंचुरी की दायरा बढाया जाना प्रस्तावित है, जिसके मुताबिक बार-नवापारा 454 वर्ग किमी की हो जायेगी, यहाँ हर मोड़ पर कोई वन्यजीव मिलना तय है, बाघ के मामले में इस लैडस्केप में आठ बाघ का होना बताया गया हैं.पर इस पीढ़ी में कभी किसी ने बाघ नहीं देखा,मेरा तो विश्वास हो चला है कि हरियर छ्तीसगढ़ में बाघ का जो आकड़ा बताया जाता है वो फर्जी है,जबकि जंगल आलादर्जे का है.बार नवापारा में नीलगाय, बाईसन,चीतल,सांभर,तेंदुए,खरगोश बहुत है, भालू महुआ खाते दो बार मिला.! मोर, हरियल जगंली मुर्गी, भीमराज के अतिरिक्त जलीय पक्षी भी स्वप्निल संसार रचते है. 

प्रवासी हाथियों में इस सेंचुरी में और इसके इर्द-गिर्द डेरा डाले है. 'गजराज परियोजना' में बार नवापारा को लिया जाना अब जरूरी हो गया है, यहाँ किसी नेशनल पार्क से बाघ लाने की योजना बलौदा बाजार केडीऍफ़ओ एस के बड़गैया लाने की सोच बनाये है,उसके लिए प्री-बैस तो है पर ये संभव नहीं लगता.सेंचुरी में तालाबों में पानी बना रहे इसके लिए सौरऊर्जा चलित पंप चल रहे है,ये वानकी के लिए अन्य सेंचुरी जहाँ नहीं वहां भी लगाये जाने चाहिए..बार-नवापारा का गाँव नवापारा अब सेंचुरी से विस्थापित हो गया है ,,सैलानियों के लिए और भोजन और भ्रमण के लिए सुविधा उपलब्ध है, पक्षी-विहार विकसित किया जा रहा है जिसका भ्रमण सैलानी वन्यजीव देखते हुए साइकिल से करेंगें !!


हाँ तो क्या कर रहे आप अवकाश में.
कुछ दिन तो गुजरे प्रकृति के पास में ..!

Monday 16 March 2015

रोजी स्टारलिंग, विमुख नहीं बेलमुड़ी से




प्रवासी रोजी स्टारलिंग [गुलाबी मैना/तिल्यर] अपने प्रवास पथ से विमुख नहीं हुए है और वापसी उड़ान के पथ में बेलमुड़ी को पड़ाव बनाये है. बेलमुड़ी गाँव बिलासपुर शहर से कोई चौदह किमी दूर है जहाँ वे हजारों की संख्या में पड़ाव डालते है. दो साल पहले इन्ही दिनों उनको देखने मेला लगा जाता.

नतीजन उनके प्राकृतिक परिवेश में इस खलल के कारण, विगत साल वे कम आये कब आये और गए पता ही नहीं लगा. लेकिन इस साल जाते वसंत को वो गुलजार कर रहें है.! वो परिचत पीपल और बबूल के पेड़ पर झुण्ड में रुकते है और यहाँ के जलाशय में  उगी एलिफेंट ग्रास में रात महफूज ठिकाना करते है ,,,!

रोजी स्टारलिंग प्रवासी पक्षियों में सबसे पहले बड़े झुंडों में भारत आने वाले पक्षी है.छत्तीसगढ़ में ये वसंत के पहले दिखते हैं, टेसू व सेमर के फूलों का रसपान,पीपल बरगद के फल खाते वक्त ये चहचहाते है पर कोई करीब आये तो सब खामोश हो जाते हैं,इन दिनों झुण्ड में तेज लहरेदार उड़ान भरते हुए ये मेहमान यूरोप और पश्चिम था मध्य एशिया को कूच करते हैं जहाँ मई-जून प्रजनन करते है,,!

Monday 9 February 2015

क्रोकोडाइल पार्क कोटमी सोनार




प्राकृतिक परिवेश का लाभ उठाते हुए कोतमी सोनार का क्रोकोडाइल पार्क का चुम्बकीय आकर्षण सैलानियों को खींचने लगा है ,,! कभी यहाँ के बिखरे तालाबों में कुदरती तौर पर मगरमच्छ थे आज इनको सुव्यवस्थित कर लिया गया है ,,! यहाँ आने वाले को मगर धूप में पड़ा पीठ के पेनल से सौर ऊर्जा लेते देखा जा सकता है,,! देखने सुरक्षित प्रवास-पथ बनाया गया है..!

जांजगीर-चांपा जिले में बने इस क्रोकोडाइल पार्क में लेसिंग विस्लिंग डक सहित अन्य परिंदों ने डेरा बना लिया है ,,बस एक कमी लगी कभी-कभी शरारती बच्चे मगरमच्छ को पत्थर मार देते हैं ,,! यहाँ खूबसूरत उद्यान और सैलानियों के काफी कुछ है ,,!

Saturday 31 January 2015

गिधवा पक्षी विहार




''छतीसगढ़ में प्रस्तावित गिधवा पक्षीविहार इन दिनों.देसी-विदेशी जलीय परिंदों से गुलजार . पक्षी प्रेमी यहाँ कैमरे-दूरबीन ले कर पहुँच रहे हैं.इस इलाके के गाँव वाले परिंदों के प्रति अनुराग रखते है.सचिव श्री कुर्रे ने बताया की गाँव में मुनादी करा दी गई है की परिंदों को कोई परेशां न करें ,,पर इनके संरक्षण के लिए वनविभाग के प्रयास और सोच नाकाफी लगी ,,! 
गिधवा; बेमेतरा जिले में है ,,हम बिलासपुर से रायपुर सड़क मार्ग पर शिवनाथ नदी के पुल से मुंगेली की राह पर निकले और आठ मिल दूर गिधवा पहुचें,,जलीय परिदों को बीस प्रजाति यहाँ दो तीन हज़ार से आधिक होगी ,,इसमें नीचे इस इलाके में चार दशक बाद नजर आये 'स्पून बिल जोड़े' की फोटो दे रहा हूँ ,,ये फोटो करीब 400 मीटर दूरी से शक्तिशाली कैमरे से गई है ,,!
गिधवा में क्या होना चाहिए,,!


1.यहाँ दो बड़े जलाशय सहित समीप परसदा के तालाब को संचुरी की अधिसूचना जारी करके वन सेंचुरी का अमला पदस्त किये जाने को प्रकिया शुरू होना चाहिए,,!
2.इन तीनों जलाशय को जलकुम्भी से बचाना होगा ,,जो अभी नहीं है,,
3. गिधवा का छोटा जलाशय गर्मी के दिनों सूख जाता है ,,और जलीय पक्षी चले जाते है ,,ये इस साल से न सूखे इसके लिए ट्यूबवेल लगाये जाने चाहिए ,,! गाँव में बिजली है ,,!
4. पता चला वन विभाग मेड पर फलदार पेड़ लगाने वाला है ,भरतपुर पक्षी विहार राजस्थान[. को आदर्श मानते हुए बबूल को और बढायें और फलदार पेड़ इस गाँव में कही और लगाये..
5 मेड पर मवेशी चराई रोकना होगा ,,निस्तारी के लिए सिमित घाट तय कर दें ताकि मेहमान परिंदे परेशां न हो ..!

Wednesday 21 January 2015

क्या होली को तोता जानता है ,,



बचपन में कहानी पढ़ी थी -अकाल में सारे परिदें उड़ कर दूजे देश चले गए पर तोता सूखे पेड़ में चोंच से पानी ला कर डालता रहा पेड़ जीवित हो गया ,,,फिर यही पेड़ और उसका कोटर उसका आशियाना बन गया ,,! अफासनों की दुनिया से आये हकीकत में ,,!
कुछ दिन पहले डाल में बैठे तोते का जोड़ा दिखा था ,कल मुझे वो कम्पनी गार्डन में 'पाम' के सूखे पेड़ पर अपना आशियाँ खोज किये मिले,,,! सलीम अली- के मुताबिक ये तोते फरवरी में घर बसते है,जो जगह के अनुसार आगे-पीछे हो सकता है ,,बरसों पहले मुझे किसी बहेलिये ने बताया था,,होली के पहले कोटर से नवजात तोते उड़ान भर जाते है ,,उसके मुताबिक तोतों को पता होता है की होली पर सूखे पेड़ों की कटाई जलने के लिए होती है ,,!!