''कसर न छोड़ी थी किसी ने, अरपा नदी को बर्बाद करने में,
रब ने रहम कर ''सुरखाब' के दो कंवल अरपा में खिला दिए..
जैसे अरपा नदी में दो कमल खिले हो दो सुरखाब मुझे कार से जल में विचरण करते दिखे, अपूर्व ने कार रोकी और राहुल जी और मैं कैमरे ले कर फोटो लेने जुट गए, तीस बसर बाद सुरखाब का
जोड़ा मुझे दिखा था, मैंने तो मान चला था, शीतकाल के ये में मेहमान परिंदे डिस्टर्ब हो कर विम बिलासपुर,.से विमुख हो चुके हैं.
इनकी रंग सुन्दरता का एक हो उदाहरण 'सुरखाब के पर लगे है क्या,इस मुहावरे से ही जाहिर होता है,,सहित्य से ले कर लोक मिथक में सुरखाब के जिक्र है. अक्सर ये जोडों में दिखते है,, इसलिए इनका नाम भी दोनों साथ भी है जैसे- चकवा-चकवी, गौना-गौनी,चक्रवाक-चक्रवाकी, कोक-कोकी, ये सारे दिन साथ रहते है और रात एक दूजे से अँधेरे में रह रह कर आवाज करते सम्पर्क में रहते है, मान्यता है ये जोड़ा नहीं बदलते,याने एक मरा तो दूजा वियोग में जान दे दे देता है, इसलिए एक नाम वियोगी भी हिंदी थिसारस में मिलाता है,
ये 66 सेमी ऊँची उड़ान भरने वाली बत्तक है जिसका अंग्रेजी नाम है- RUDDY SHELDUCK,
कुछ लेखक इसे प्रवासी मानते है, ये जलीय कीट मछली और सरीसृप खाती है, सामान्य; ये जाड़ो में दिखती है, दूसरी बार में राजेश अग्रवाल राजेश दुआ, दिनेश ठक्कर के साथ फिर इनको देखने गया वो सुरक्षित दूरी पर नदी में तैर रही थी... मेहमान सुरखाब तुम्हारा स्वागत है,,!!