Monday 22 June 2015

गिद्धों को बचना होगा

'ऊँचे आकाश पर उड़ान भरने वाले गिद्धओं को जू के पिंजरे में देख ये आशंका होना स्वाभाविक है कि दुर्लभ्य जीवों का अंतिम आशियाना क्या चिड़ियाघर ही होगा,,कम होते परिंदों को बचाने के लिए अब सभी जिलों में 'जिले का' एक पक्षी घोषित कर उसकी उसका संरक्षण जरूरी है. छ्तीसगढ़ के बिलासपुर के जू कानन पेंडारी में ये गिद्ध खुडिया; और लोरमी" के इलाके से कोई दो साल के दौरान लाये गये हैं, ये मुगेंली जिले में हैं, जहाँ और कुछ गिद्ध बताये जाते हैं ,,!!
लगभग 90 सेमी ऊँचे और मजबूत गिद्ध सफाई कर्मी है ,पर दो दशक में हुए ये दिखाना कम हो गए,बताया जाता है दुधारू मवेशियों को अधिक दूध देने लिए हार्मोन्स के इजेक्शन दिए जाते और फिर इन मवेशिओं के मरने के बाद गिद्ध ने उसे अपनी खुराक बना लेते.. जिस वजह इन हार्मोन्स के बचे असर से गिद्धों के अंडे से बच्चे नहीं निकते,गिद्ध काफी ऊँचे पड़े पर घोंसला बनते है.. अब ऊँचे और मजबूत पेड़ कम हो चले ! आज कम ही लोगो को याद है कि अंतिम बार गिद्ध कब देखा है ,,!!

जू में गिद्ध को चाल और सुन्दरता देखते बनती है,,कुछ दिनों हुए अचानकमार टाइगर रिजर्व का दफ्तर मुंगेली जिले के लोरमी में शुरू हुआ. बाघ और गिद्ध का नाता है, बाघ शिकार खाने के बाद जो बचा छोड़ जाता है वो गिद्धों का भोजन होता है ,,इस तरह उनकी इस सफाई कर्म से जंगल में वन्यजीवों में बीमारी नहीं फैलाती ..
आज वक्त है इस शानदार जटायू को बचाएँ कल फिर वक्त न होगा ,,

Wednesday 17 June 2015

गोह ने अपने को बचा रखा ..



गोह को बरसों बाद उसी स्थान पर विचरण करते देख आस बंधी की कुछ जीव छिप कर वजूद बनांये है, शहर से लगे मेरे कृषि प्रधान गाँव मंगला में अपने खेत जाते समय गोह [कॉमन इन्डियन मोनिटर लिजार्ड] और कुत्ते को आपस में खेलते देखा ,गोह पूंछ से वार करता और कुत्ता हट जाता.. दोनों किसी को हानि नहीं पहुंचा रहे थे ,, मुझे देख गोह झाड़ी में जा छिपा और कुता बाहर  खड़ा हो गया,..  फिर बरसों खेतों से लगभग कटा रहा लेकिन फोटोग्राफी के शौक ने फिर खेत पहुंचा दिया है..!

दो दिन हुए करीब उन्ही लेंटाना की झाड़ियों के पास मुझे एक गोह दिखा दिया, जब तक वो वापस जाता चार फोटो मिल गए, काफी साल पहले मैंने देखा साबरिया किस तरह गोह का शिकार सब्बल से खोद कर करते है,,एक बार देखा की गोह की पूँछ को उसके गले में बांध कोई शिकारी गोलाकार बनाये लाठी में डाल सात -आठ गोह लिए सड़क से जा रहा था ,,,सुना है कुछ लोग गोह को खाते हैं और चमड़े से चिकारा जैसा कोई वाद्ययंत्र बनाते थे ,,! गोह वन्य जीव अधिनियम में संरक्षित है पर इसकी संख्या में कमी हुई है, ये बात और है की मंगला गाँव में इसने अपने को बचा रखा है ,,!

इस बार गोह की फोटो के दौरान एक बात देखी जिसे शेयर कर रहा हूँ- इसकी चमड़ी में काफी झुर्री होती हैं, जिसका उपयोग ये शरीर का आकार बदलने में बखूबी करता है ,,मुझे ये बैठा दिखा,तब छोटा और मोटा दिखा,,, पर भागे समय ये लम्बा और पतला दिखा ,, शायद इसका उपयोग ये बिल में आने जाने वक्त करता होगा ,,सभी फोटो एक ही एंगल से ली गई है जिसमें भी बात जाहिर होती है ,,,!!

Wednesday 10 June 2015

मानसून का संदेशा चातक लाया ,

मानसून के पहुंचने में अब देर नहीं ।मानसून का दूत चातक ( Pied crested Cuckoo) जिसे पपीहा कहते हैं पहुंच चुका है। मानसून पहले की बारिश आज शाम बिलासपुर में हुई।
हर साल मई माह के अंतिम सप्ताह में आने वाला चातक आज सुबह 9 जून को मुझे बिलासपुर शहर के करीब गाँव मंगला में मेरे खेतों में पेड़ पर दिखा  और मैंने उसकी फोटो भी ली है ,,

आम तौर पर इसके छतीसगढ़ आगमन के बाद आठ दस दिन में बारिश शुरू हो जाती है। सलीम अली के अनुसार इसका प्रवास अधिकतर द.पू.मानसून पर निर्भर करता है । इसकी एक प्रजाति आफ्रिका से भी आती है । मेरी ये सोच है की मानसून का वेग और बारिश से बचाने ये अपनी यात्रा पूरी कर लेता है और मानसून कब आ रहा है ये उसको सहज  ज्ञान होता है .
पपीहा बादल देख पेड़ से पियू पियू की रट लगता है।इल्ली और छोटे फल इसकी आहार तालिका में शामिल हैं ।
बारिश के लिए उसकी इस रटन पर हिंदी साहित्य में काफी कुछ है।
हरिवंश बच्चन ने लिखा है-
ये वियोगी की लगन है ।
ये पपीहे की रटन है ।
कुछ इसे स्वाति बूंद की आस लिखते हैं।
कोयल के समान ये भी अपने अंडे नहीं सेता । बैब्लर पक्षी जिसे सतबहनी भी समूह में रहने के कारण कहा जाता वे  इसके अंडे सेते हैं । जो इधर काफी हैं. आम तौर  पर चातक नीची उड़ान भरता है पर  बारिश के अंत और शीतकाल में चातक अपनी वंशवृद्धि कर ऊँची उड़ान भरते वापस हो जायेगा।