महाकवि कालिदास के विरही यक्ष का
संदेश ले जाने वाले मेघ तेरा स्वागत है, तेरे स्वागत में साल के घने वनों में हरी
चादर ओढ़ ली है. जिस भांति मछली जल बिन नहीं रह सकती, वही दशा चातक की बनी है, तेरे
आसरे खेती करने वाले किसान तुझे धरासार बरसते देखना चाहते हैं, जिससे पानी का खेती में कम न हो.
कोयल ने कुहु अब बंद है, वो जानती
है कि अब जब बरसाती मेढ़क शोर करने लगे हैं. तो उसकी कौन सुनेगा. पर मैं जानता हूँ
कि, मीठा गाने वाली कोयल ने कौवा को उल्लू बना दिया है और उसके घोंसले में अपने
अंडे दे दिए हैं, अब कौवा दम्पति पाले कोयल के बच्चे. इसलिए मैं मीठा बोलने वालों
से ‘तीन-तौबा’ करता हूं. जंगल में घने साल के पेड़ अमरकंटक की
घाटी में छाए हैं, इस घाटी में बारिश कुछ पहले शुरू हो जाती है और
उसके साथ झींगुर गाने लगते हैं, ये उनके मिलन
का संगीत. एक साथ करोड़ो झींगुर का ये ‘चिचिची’ का शोर भरा संगीत, टाइगर वेली की सड़क के दोनों तरफ जंगल को जीवंत बनाए
रखता है.
बगुला-भगत मानसून से पहले रंग बदलता
है. सफ़ेद बगुले के सर से पीठ तक पीले पर निकल आते है, प्रजननकाल में उनका रूप बदल
के सुंदर हो जाता है. काले कर्मोरेंट और ये सफ़ेद बगुले रंगभेद नहीं मानते और किसी सुरक्षित
पेड़ को कालोनी बना साथ-साथ चौमासा बिताते हैं. मानसून के कारण नदियाँ बहाव में
होती हैं, और ऊपर चढ़ती मछलियों को ये तट से पकड़ कर घोंसले में आए नए मेहमान का पेट भरते हैं. गरमी और वर्षाजनित नमी
से परिंदों के अण्डों से बच्चे फूट निकलते हैं. पक्षी इस ऋतू में बढ़े कीट-पतंगों
को पकड़ कर बच्चों का पोषण करते हैं, यदि वे ये न करते तो किसानों की लगाई फसल को न
जाने कितने और कीट प्रकोप का समाना करना पड़ता.
काले घनेरे मेघ के नीचे जब बड़े सफ़ेद
बगुले उड़ाते हुए तेजी से अपने आशियाने को जाते दिखाई देते है तो मैं जाना जाता हूं
कि अब तेज बारिश होने वाली है.
उड़ने वाली भूरी बत्तखें [विस्लर] जब सीटी बजाते
नीची उड़ान भरतीं हैं, तब मानते हूं कि ये
अंडे देने कहीं जगह खोज रहीं हैं. काली मैना बिजली के खम्बों में घोंसले बनाती हैं
तो मैं हैरत में होता हूँ इसे कैसे पता चला कि मेघ आने वाले है. मेगपाई रॉबिन और
बुलबुल जब मधुर गाने गाती हैं तब लगता है मेघों के बरसने से पहले ही वो ख़ुशी के
गीत गा रही है. महोक की जुगलबंदी का कोई सानी नहीं, जब में पीसी में लिख रहा हूँ
कोई कथायी महोक जोड़ा दूर बैठा एक दूजे से बात कर रहा है.चीटियाँ अंडा ले कर ऊपरी
स्थान को निकल पड़े तो मानो बरखा भरपूर. न जाते ये जीव कैसे जाने जाते है की मेघ
तुम आ रहे हो.
किंगफिशर की तो बात निराली है,
लम्बी चोंच इसका हथियार है, जितना सुंदर रंग मछली पड़ने उतना
ही हुनरबाज ये परिंदा, गोताखोरी कर मछली पकड़ने में माहिर. मैं जब अमरकंटक जाता हूं
तो माँ नर्मदा के उदगमस्थली के कुंड में छोटे किंगफिशर को गोताखोरी कर मछली पकड़ते
देखता हूं. वो कुंड के पास किसी मन्दिर पर चुपके से बैठा होता है. गरमी खत्म नहीं होती
कि किंगफिशर तेज लम्बी गुहार लगता है बरसात के लिए, कदाचित
वो जानता है, बारिश न हुई तो नदी-जलाशय में मछलियाँ कहाँ सा आएगी ..मोर तो बादल
देख छम-छम कर नाच उठता है. उसकी केका ध्वनि दूर तक समां बांध देती है. जेकाना [जल मोर] और शोर मचाने वाली जलमुर्गी दूर खेतों तक
पहुँच जातीं हैं. नदियाँ,नाले,तालाब, खेत सब प्यासे हैं. काले बदरा इनकी प्यास बुझा.
हे काले मेध, तू मित्र बनके आ और जो
तेरी प्रतीक्षा करते हैं, उनकी मन की प्यास पूरी तरह बुझा. कालिदास के
मेघदूत, जिसका दूत तू बना, वो तो सर्वांग सुन्दरी पत्नी से दूर विरह कट रहा था पर
ये सब तो तेरी विरह में हर साल आठ-नौ माह गुजरते हैं..अब आया है, तो ‘चातुर्मास’ इनके
साथ बिताना.
[पहली फोटो जंगल की मेरी ,शेष गूगल से साभार-प्राण चड्ढा ] .
[पहली फोटो जंगल की मेरी ,शेष गूगल से साभार-प्राण चड्ढा ] .
पावस की फुहार सी मनभावन.
ReplyDeleteसुन्दर चित्रण. पढ़ पढ़ के खुश हो रहा था, चलो अब बदरा आ रही होगी. जब पोस्ट की तारीख देखी तो होश आ गया.
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