Saturday 19 October 2013

अचानकमार टायगर रिजर्व में उहापोह का दौर ..




अचानकमार टायगर रिजर्व छतीसगढ़ का वो जंगल है जहाँ सबसे अधिक बाघ होने का दावा किया जाता है.बस्तर के इन्द्रावती नॅशनल पार्क में बाघों की गणना नक्सली समस्या के कारण संभव नहीं,दावा है कि अचानकमार टायगर रिजर्व में तेरह बाघ हैं,यहाँ बसे बाईस गावों के विस्थापन का काम पीछे पांच साल से किस्तों में चल रहा है.बिलासपुर से अमरकंटक जाने वाली सड़क इसके सीने से गुजरती है,वैकल्पित मार्ग रतनपुर से केवंची,पेंड्रा तक बन गया है पर घाट का कुछ मार्ग रुका है.वो शुरू होगा तो वन्यजीवों को कोलाहल से भी राहत मिलेगी..!

इस नेशनल पार्क की विडम्बना है की कोर एरिया में बसे गांवों में धान की खेती होती है,भुट्टे की खेती के बाद गाँव वाले शीतकालीन सरसों की खेती के लिए भूमि तैयार कर रहे है,खेतों में नागर चल रहे हैं.बैगा आदिवासी यहाँ बसते हैं,दिल्ली के प्रो.डाक्टर खेड़ा बैगा जनजाति के हित में बीते ढाई दशक से लमनी में रहते है वो छापरवा गाँव में बच्चों को पढ़ाने रोज जाते है.. अस्सी फीसद बच्चे बारहवीं में उनके पढ़ाये पास हो गए है,जीवन के अस्सी वसंत देख चुके प्रो.खेड़ा को चिंता है की अब इन बैगा बच्चों को रोजागार सरकार उपलब्ध कराए..! 


बैग अत्यन्य पिछड़ी जनजाति है,कुछ पशुपालन और खेती करना जान गए है,इनकी महिलाओं को गोदना,मोती की माला का खूब शौक है,कौड़ी से श्रृंगार इनको प्रिय है.टायगर रिजर्व होने के बाद विकास के कामों में मंदी हो चुकी है.जिसका असर इस इलाके के वनवासियों पर पड़ने लगा है. पर एक दिन तो इनको अपनी जमीन वन्यजीवों के लिए छोड़कर जाना है.पर सरकारी काम है समय की सीमा तय नहीं है.जिस वजह यहाँ के रहवासी उहापोह में है कि उनका भविष्य आखिर कब तक अधर में लटके रहेगा. अब वो वक्त आ गया है की सरकार मिलजुल कर वन्यजीवों और वनवासियों के हितार्थ कदम उठने में देर न करे.  

2 comments:

  1. आपकी बोलती तस्‍वीरों सहित प्रणम्‍य डॉं खेरा.

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  2. ललित जी के ट्वीट के ज़रिये यहाँ पंहुचा।
    राहुल जी ठीक कहते हैं, आपकी तस्वीरें पूरी
    कहानी बयां करती हैं।

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