Thursday 3 October 2013

वन्यजीव संबन्धित कानून का प्रचार जरूरी


वन्यजीवों के हितार्थ 1972 का कानून अभी जमीनी स्तर तक नहीं पहुंचा है, न तो इसके बारे में  जंगल के अदना कर्मी ही भली-भांति जानते हैं और न ही अपराधी की वो अपराध कर रहे हैं। वन्य जीवों को बचाने और अचानकमार-कान्हा के कारीडोर की पदयात्रा की शुरुवात वन्य प्राणी सप्ताह मे अभी खुड़िया से शुरू हुई थी कि एक ऐसा वाक़या दरपेश आया।

वर्षा के कारण खुड़िया बांध के निचले इलाके में उगे खरपतवार में एक संवारा जाति का व्यक्ति अपने शागिर्द को कोबरा सर्प की जहर ग्रंथि निकालने का हुनर सीखते दिखा, डब्लूडब्लूएफ द्वारा आयोजित इस पदयात्रा में वनविभाग के अधिकारी और कर्मचारी शरीक भीथे। आधिकारी आगे थे और बाकी कुछ पीछे, जिनमे वन्यजीव प्रेमी फोटोग्राफर के अलावा कुछ छोटे वन कर्मी शामिल थे। उत्सुकतावश कुछ लोग फोटो के लिए उस तक पहुंचे। वो कपड़े की रस्सी को कोबारा के मुंह मे डाल कर एक लकड़ी से इस तरह बना लिया था, जिसे साँप विवश हो उसके इस आपरेशन टेबल पर था। फिर ब्लेड से उसके जहर की ग्रंथि काट कर निकाली,खून बह रहा था,और दांत भी तोड़ दिये।

सर्प के साथ ये अत्याचार देख फोटो लेने वाले उबाल पड़े, लेकिन वन कर्मी खामोश थे,शायद उनको पता ही नहीं था की ये सब अपराध है।मगर जब उनको बताया गया, तब वो सक्रिय हुए और पतासाजी की, कुछ और भी सर्प पकड़ने वाले थे, जो ये मजरा देख भाग खड़े हुए। मगर उनके पिटारे में आधा दर्जन साँप वन विभाग के हाथ लग गए। जिनमें दो रेटस्नेक और बाकी कोबरा थे। सावरा परम्परगत सर्प पकड़ते रहे है, इसको ये भी पता नहीं था की जमाना बादल गया है और ये अब अपराध है।

उसे अधिकारियों ने समझाईश दी और सर्प आगे जाकर छुड़वा दिये। सावरा को कुछ मुआवजा भी उन्होने दिया। उसने बताया इस इलाके में बारिश के दिनों काफी सर्प पकड़े जाते हैं, जिनको विक्रय कर वे कुछ कमाई करते हैं। इसके लिए वो कोई चालीस किलोमीटर दूर करगी गाँव से आया था.

क्या कहता है, वन्यजीव बचाने के लिए सन 1972 से प्रभावी कानून ...

धारा 47-[ख] साफ है कि कोई किसी वन्यजीव को नहीं पकड़ेगा, अपने कब्जे में नहीं रखेगा। उसको बेच नहीं सकता,चमड़ा नहीं निकाल सकता,मार या खा नहीं सकता न ही परिवहन कर सकता है। 

1 comment:

  1. संवारा जनजाति के लोगों की रोजी रोटी सांप पकड़ना ही है, इनके लिए स्नेक पार्क बनाना चाहिए जहाँ साँपों के संरक्षण के साथ उनका जहर निकला जा सके.--

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