Sunday 22 December 2013

अबाबील की याद में


ये नन्ही आकाश में घंटो उड़ने वाली चिडिया पुराने भवनों की बाशिंदा है,जब छतीसगढ़ राज्य बना तो नार्मल स्कूल के विशाल भवन का चयन हाईकोर्ट के लिए हुआ.यहाँ अबाबीलों का बसेरा था,सफाई कर्मियों ने नवजात बच्चो सहित घोंसले उजाड़ कर नीचे मरने के लिए फेंक दिए.मैं कभी विवि के लाइब्रेरी से किताबे लेने यहाँ जाता था तो जो अबाबील खिड़की से बच्चो के लिए चारा लाती थी, उनके बच्चे को नीचे दम तोड़ते देखा..!मैं तब दैनिक भास्कर में सम्पादक था..फोटो और खबर प्रकाशन के अलावा क्या कर सकता था..तेरह साल हो गया है इस बात को..फिर ये चिड़िया कम होती दिखी और अब आलम ये है की दिखे तो सुकून मिलाता है की चलो कुछ तो कहीं बची है..!

सही मायने पुराने भवनों में बसेरा बनाने वाली अबाबील की ये प्रजाति खतरे में है आज के वास्तुशिल्प में उनके आने की जगह ऐसी के योग्य बने कमरों में रहती नही और न ही उनको पसंद किया जाता कभी यूरोपियन वास्तु शिल्प से बने मकानों में ये छोटी चिड़िया दिन में उड़ाते दिखती,मस्जिद में भी दिखाई देती संध्या ये आकाश में ऊँचे उड़ती और उनकी आवाज सुनाई देती-बिलासपुर रायपुर सड़क मार्ग पर टेलीफोन की तारों पर दूर तक बैठी दिखती ..पर अब नही..!

हाँ वसंत में प्रवासी अबाबील तेज नीची उड़न भरते हुए जो कीड़े हमारी आँखों से दिखी नहीं देते उन्हें जेट की गति से हमला कर खेतों में खाती उड़न भरती दिखती है ..पर मेरी प्यारी उड़ान भरने वाली सारे साल पुराने मकानों में रहने वाली अबाबील कम हो गई हैं..!!इन प्रवासी अबाबीलों में मैंने ठंड के दिनों पाकिस्तान में देखा यहाँ वो दो माह बाद पहुची ..इनकी संख्या भी साल दर साल कम हो चली हैं ..[फोटो नेट से]



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