Tuesday, 29 April 2014

प्रवासी पक्षियों का रूठ जाना


बीते साल वसंत में आने वाले प्रवासी पक्षी तिल्यर[रोजी स्टर्लिग]इस बार न बतौर आये, दूर देश से तेज उड़ान भर कर बिलासपुर[छतीसगढ़] के इलाके में ये, बीते साल लाखों में आये थे. दो मास व्यतीत किये. फिर प्रवासकाल समाप्ति के बाद वापसी के लिए हजारों की संख्या में बायपास रोड के बेलमुंडी गाँव के सूखे दरख्तों पर सैकड़ों के झुण्ड में संध्या पहुंचते,ये उनके वापसी का मुकाम एक पखवाड़े बन रहा. एक झुण्ड के देख उड़ता दूसरा भी वहां उतर जाता..संध्या होते सैकड़ों शहरी ये नजरा देखने पहुँच जाते. राह के वाहन ट्रक भी खड़े हो जाते इन्हें देखने के लिए. दल तेज उड़न भरते आते और एक पल में पेड़ पर पत्तों सामान बैठ जाते..!

सभी अख़बारों में प्रकृति के ये शानदार नजारा प्रकाशित होता, फिर अगली संध्या भीड़ और बढती जाती.. कैमरा ले जिज्ञासु और करीब होते जाते, यहाँ साथ जुड़े तालाब के ऊँची एलिफेंट ग्रास में इन परिंदों का रात्रि बसेरा होता और फिर ये सुबह अगले पड़ाव के लिए उड़ान भरते, वो टेसू,सेमर के फूलो का रस चूसने और पीपल के अंजीर खाने बड़ी संख्या में हर साल आते रहे हैं, वो मेरे बचपन के परिचित हैं..!
..लगता है बीते साल उनके प्रवास पथ पर बेलमुंडी गाँव में जो भीड़ जुटी और उनकी निजता भंग होने से वो डिस्टर्ब हो गए जिस वजह इस इलाके में इस साल बीते साल की तुलना में पांच फीसद भी न आये..जो आये वो कब विदा हो गए ये भी पता न चला..!

उनके विदेश से प्रवास शुरू होने की जानकारी 'दैनिक भास्कर' के पहले पेज पर सचित्र कोई तीन माह पहले प्रकशित हुई थी,जिसमें लाखों परिंदे व्हेल के आकर में उड़ान भरते दिखाई दे रहे थे,काश बीते साल सजगता होती और परिंदों को डिस्टर्ब होने से बचाने कोई कदम उठाया होता ..! पता नही वसंत के इन साथियों से अगले साल भेंट होगी ये वो कब तक नाराज रहेंगे ..![फोटो नेट की है और हकीकत के करीब की हैं]

Sunday, 27 April 2014

टाइगर रिजर्व में रोग फैलाव की आशंका

ये फोटो एक विशालकाय नर बाइसन की है जो खुरहा चपका रोग से पीड़ित लगता है, फोटो तीन दिन पहले 24 अप्रेल को  अचानकमार टाइगर रिजर्व से गुजरने वाली बिलसपुर-अमरकंटक सड़क के गाँव लमनी से पहले दियाबार सड़क के करीब ली गई है..ये नर बाइसन पिछले पैर एक और सामने के के पैर से लड़खड़ा के चल रहा था और मुंह से झाग निकल रहा था[फोटो में भी दिख रहा है] ये लक्षण मवेशी को होने वाले रोग खुरहा-चपका के है..! ये रोग एक मवेशी से दूजे को फैलता है और जानवर की दर्दनाक मौत हो जाती है..! बीमारी की वजह ये कमजोर लगा, क्योंकि पसलियाँ भी दिख रही थीं ..!

वेटनरी विभाग के अनुसार ये fmd डिजीज है और इनदिनों फैली हुई है..बिलासपुर के करीब बसे गौकुल नगर के दुधारू जानवर भी इससे पीड़ित है. घरेलू मवेशियों और जंगल के इन जीवों में एक दूजे जो इस रोग के फैलाव का खतरा बन रहता है..मेरी जानकारी में कोई ढाई दशक पहले शिव तराई और बारीघाट के बीच के जंगल में ये बीमारी फैली थी तब इस इलाके में बड़ी तादात में वन्यजीवों की मौजूदगी था और बाइसन बुरी मौत मर थे ..!#


#[ये उन दिनों की बात है जब शेर दिल अधिकारी एम् आर ठाकरे इस अचानकमार सेंचुरी के इंचार्ज थे और पत्रकार अमित मिश्र,अनिल पाण्डेय सहित मित्रो का दल गाहे-बगाहे जंगल जाता था]

Monday, 21 April 2014

हाथी की गश्त से लकड़ी चोरों के पाँव उखड़े


कभी आतंक का पर्याय रहे हाथी आज जंगल की पहरेदारी कर रहे हैं,सरगुजा में सरहदी प्रान्त से पहुंचकर उत्पात मचाने वाले भीमकाय एक दन्त सिविल बहादुर और लाली को पालतू बना कर अचानकमार टाइगर रिजर्व लाया गया,पूर्णिमा उनकी लाडली बेटी है,जो यहाँ जन्मी है,दल से भटक और महीनों तोड़-फोड़ मचाता दुमकटा दंतैल राजन्दगांव से आखिर मस्ती करते धरा गया. इन सबका ठिकाना अब सिहावल सागर में है, जो मनियारी नदी का उदगाम स्थल है..!

महावत सीताराम,कर्मा, और शिवमोहन तथा दो चारा कातर का ये दस्ता, रोज जंगल की गश्त पर जाताहै, ये इलाका कभी लकड़ी चोरों का स्वर्ग माना जाता था..दो बार टाइगर गिनती के लिए इनसे हमारा टकराव भी हुआ,एक बार इनके हमले से जान बचाने मित्र अर्जुन भोजवानी को गोली भी चलानी पड़ी.. आज इस हाथियों ने इस दशा को बदल दिया है..!

जहाँ लकड़ी चोरी का अंदेशा होता है,गश्त उधर की जाती है,कटाई की आवाज सुनते ही ये दस्ता दबे पांव करीब तक पहुँच जाता है,फिर हाथी के चिंघाड़ से जंगल गूंज उठता है,अब लकड़ी चोरों को सर पर पांव रख कर भागने के आलावा कोई राह नहीं रहती, उनकी साईकिले छूट जाती है,चोरों को करीब अस्सी साइकलों को अब तक जप्त कर मामले बनाये जा चुके हैं..!

Saturday, 19 April 2014

कुल्लू के बचे पेड़ और मेरी यादें



यादें जवान हो जाती हैं कुल्लू के इन सफ़ेद चमकीले पेड़ों को देख कर,अपने औषधीय गुणों के कारण ये पेड़ अब कम ही बचे हैं, बिलासपुर से कोई अस्सी किमी दूर मनियारी नदी के 'खुडिया बांध' में डाक बंगले के परिसर में उगे ये कुछ पेड़ अपना ध्यान खीचने में समर्थ हैं ,इसकी गोंद की तासीर बड़ी ठंडी होती है,बस यही गुण इस प्रजाति के लिए जान लेवा बना है.राह चलता कोई ग्रामीण टंगिए से वार करता और महँगी गोंद लौटते में पा जाता, बाद ये घायल होता ये पेड़ दम तोड़ देता.. अब अमरकंटक की घाटी में ये पेड़ कम बचे हैं.वो भी दुर्गम इलाके में जहाँ मानव की आवाजाही कम है,

अंग्रेज इसके चमकीले पेड़ को 'लेडी लेग' भी कहते,जब इस डाक बंगले आता हूँ कुछ यादें जवान हो जाती हैं, कैसे इस के जंगल में बरसों पहले सिन्हा साहब ने जान पर खेल मवेशीमार बाघनी को मारा था,चन्देली वाले लाल साहब के साथ मीलों लम्बा प्रवासी बत्तखों का काफिला उड़ाते देखा था,शेर दिल वन अधिकारी एम्.आर ठाकरे साथ तेंदुए के शावकों के साथ मैंने फोटो ली और फिर अगले दिन माँ उनको उठा ले गई, बायसन का बिछड़ा बच्चा चरई के लिए जंगल गई गायों के साथ गाँव में आ गया और रहने लगा,फिर माँ उसे खोज कर आ पहुंची और रोज दूध पिलाने आती.. बाद वो शावक मर गया ..!उसे करीडोंगरी रेस्टहॉउस में रखा गया था.


इन सबके साक्षी ये कुल्लू के पेड़ भी हैं,डाकबंगले के करीब होने से सबकी निगाह में हैं और ये जीवित बचे रहे. पर जंगल में कम ही बचे हैं. सरकार को इस गुणकारी पेड़ को बढ़ाने में कोई प्रोजेक्ट हाथ में लेने की जरूरत है,देर हो चुकी है सरकार और देर न करे ..!

Thursday, 17 April 2014

पलाश का जीवन संघर्ष


''जीने की इच्छा से रौशनी के लिए पलाश [टेसू]के पेड़ का लता हो जाना है या फिर ये टेसू की कोई प्रजाति, पर मैंने ये कान्हा और अचानकमार टायगर रिजर्व में इस देखा,इसके फूल कुछ बड़े और टेसू के फूल वसंत के बाद  तक खिले हैं,जबकि सामान्य टेसू के फूल झर चुके हैं. संभवत ये जीवन के लिए टेसू के पेड़ का साल के ऊँचे पेड़ों के बीच रूपांतरण हो जाना लगता है..जो भी हो..पर पेड़ों से लिपटी लता जंगल की शोभा बढ़ती है..!!

जंगल बचाना है,तो मधुमक्खी बचाओ




मधुमक्खी और छोटे कीट के परागण से जंगल में नई वनसम्पदा का जन्म होता है.पर शहद के लिए दूर-दूर से मकरंद जमा करने वाली,मधुमक्खी के छत्ते जला कर धुआं दे कर परम्परागत तरीके से शहद जमा करने का तरीका गलत है.इसमें बदलाव लाने पर्ल इण्डिया का काम रंग लाने लगा है..
अमरकंटक की घाटी के कई गाँव के आदिवासी अब मित्रवत शहद जमा करने लगे हैं,ये रात पानी की फुहार छत्ते पर करते हैं,जिससे मधुमक्खी आक्रामक नहीं होती और एक तरफ हटाते जाती हैं,फिर संग्रहणकर्ता छत्ते के जिस हिस्से में शहद जमा होता है उसे काट लेते हैं,'पर्ल इण्डिया' के संचालक राजेश तिवारी ने बताया,बचे हिस्से में उनके बच्चे सुरखित रह जाते है..!इस तरह शहद के आलावा छत्ते से वो मोम भी हाथ आता है,जो सौन्दर्यप्रसाधनों में प्रयुक्त होने के कारण काफी महंगा होता है. ये सब मिलाता रहेगा आगे भी बस इस विधि के आपनाने से ..! जगल बचेगा तो हिरण बचेगे और हिरण बचेगा तो बाघ बचेंगे ..!