Monday 21 April 2014

हाथी की गश्त से लकड़ी चोरों के पाँव उखड़े


कभी आतंक का पर्याय रहे हाथी आज जंगल की पहरेदारी कर रहे हैं,सरगुजा में सरहदी प्रान्त से पहुंचकर उत्पात मचाने वाले भीमकाय एक दन्त सिविल बहादुर और लाली को पालतू बना कर अचानकमार टाइगर रिजर्व लाया गया,पूर्णिमा उनकी लाडली बेटी है,जो यहाँ जन्मी है,दल से भटक और महीनों तोड़-फोड़ मचाता दुमकटा दंतैल राजन्दगांव से आखिर मस्ती करते धरा गया. इन सबका ठिकाना अब सिहावल सागर में है, जो मनियारी नदी का उदगाम स्थल है..!

महावत सीताराम,कर्मा, और शिवमोहन तथा दो चारा कातर का ये दस्ता, रोज जंगल की गश्त पर जाताहै, ये इलाका कभी लकड़ी चोरों का स्वर्ग माना जाता था..दो बार टाइगर गिनती के लिए इनसे हमारा टकराव भी हुआ,एक बार इनके हमले से जान बचाने मित्र अर्जुन भोजवानी को गोली भी चलानी पड़ी.. आज इस हाथियों ने इस दशा को बदल दिया है..!

जहाँ लकड़ी चोरी का अंदेशा होता है,गश्त उधर की जाती है,कटाई की आवाज सुनते ही ये दस्ता दबे पांव करीब तक पहुँच जाता है,फिर हाथी के चिंघाड़ से जंगल गूंज उठता है,अब लकड़ी चोरों को सर पर पांव रख कर भागने के आलावा कोई राह नहीं रहती, उनकी साईकिले छूट जाती है,चोरों को करीब अस्सी साइकलों को अब तक जप्त कर मामले बनाये जा चुके हैं..!

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