Monday, 29 September 2014

टाइगर रिजर्व से पोलीथीन छात्रों ने बिना



''वन्य प्राणी सप्ताह के पहले छात्रों न अचानकमार टाइगर रिजर्व से गुजरने वाले सड़क के दोनों तरफ से प्लस्टिक,पोलीथीन जैसे पदार्थ बोरी भार भर के चुने..ये सब उने सैलानियों की करतूत जो पार्क में वो कचरा फैंक जाते हैं जिसे खा कर वन्यजीव बेमौत मरने की आशंका रहती है..! पार्क को सैरगाह मान कर सड़क के किनारे शराबखोरी करने वालों की खाली बोतलें और 'चखना' के खाली पैकट भी बड़ी तादात में चुने गए ,,!
करीब पैसठ किलोमीटर लम्बी इस सड़क पर बिलासपुर के प्रतिष्ठित सिद्धि विनायक संसथान, कोटा के डीकेपी केवंची के आदिवासी छात्रावास के 160 छात्र- छात्राएं शामिल हुई,, सबको एक निश्चित दूरी में अलग जत्थे में ये काम करना था. विभाग और नेचर क्लब बिलासपुर द्वारा आयोजित इस आयोजन में छात्रों को वनसम्पदा से परिचय कराया गया..! अचानकमार का रेस्ट हॉउस अब म्यूजियम में तब्दील हो गया है,उसे भी सबने देखा ,,!

कार्यक्रम के अंत में पार्क के अधिकारी सीएल अग्रवाल ने छात्रों को सम्बोधित किया ,उन्होंने छात्रों से अनुभव व सुझाव भी चाहे आयोजन की सफलता में नेचर क्लब के संयोजक मंसूरखान,विवेक जोगलेकर, अक्षय अलकरी,विक्रम दीवान अमिताभ गौड़ ,स्कूल स्टाफ, वन अधिकारी पीके केशर ,रेंज आफिसर नाथ जुटे रहे ..!

Wednesday, 24 September 2014

दिल्ली जू के दुर्दिन

मेनका गाँधी ने केन्द्रीय राज्य मंत्री के रूप में काम कर दिल्ली जू के ऊँचे दर्जे का बना दिया था आज वो सिलसिला होता तो सफ़ेद बाघ में बाड़े में कल गिरे युवक को कदाचित बचाया जा सकता था.
1. फोटो में युवक जिस जगह पर भयभीत बैठा है,और बाघ खड़ा है मेरे को लगता है ये दीवार के बाद खाई है जिसमें पानी होना था.. जिससे बाघ और सैलानी के एक सुरक्षा परत और बनती पर ये बारिश के दिनों फोटो में भी सूखी दिख रही है..!
2.युवक के करीब पन्द्रह मिनट तक नहीं मारा और जू प्रबन्धन उसे बचा न सका,,शायद कोई कारगर इंतजाम भी न थे.. !
बच सकता था युवक अगर ये इंतजाम होते ..!
अ. गन से धमाके किये जाते या धरपटक फटके फोड़े जाते, जो जू कीपर के पास होने थे..
ब. वाटर केनन के बंदोबस्त होता तो उसकी बौछार से बाघ भीगने से बचने भाग जाता, मैंने बिलासपुर के जू में बाघ और बाघिन में लड़ाई में इसका उपयोग देखा है किस तरह दोनों हिंसक लड़ाई बंद कर देते हैं ,,इसकी फिल्म मौजूद है .!
इस हादसे से दो बात साबित हो गयी है. पहला की जू प्रबन्धन की सोच कम,बचाव के इंतजाम कम है और चिड़ियाघर में जन्म रहे सफ़ेद बाघ में शिकार की सहज आदत मरती नहीं,,!
सन 1950 के करीब रीवा के महाराज मार्तण्ड सिंह ने जंगल से पहला सफेद शावक पकड़ा जिसका नाम मोहन दिया गया,जू के सारे सफ़ेद बाघों का वो पूर्वज है .!
मेनका गाँधी जब पर्यावरण राज्य मंत्री थी तब उद्योगों पर सख्ती बरत रही थी इस लाबी ने एक बड़ी लकीर केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री के रूप में खिंचवाई और मेनका गाँधी का कार्य क्षेत्र बस दिल्ली का चिड़िया घर कर दिया गया ,,तब कार्टून में मेनका को चिड़ियाघर के एक पिंजरे में बंद दिखाया गया ..जवाब में मेनका ने कहा-मुझे जो काम दिया गया है बेहतरी से करुँगी और इस जू को दुनिया का में बेहतर जू बना दूंगी ..और उन्होंने इसका कायाकल्प करके दिखाया ..! फोटो नेट की है]

Sunday, 14 September 2014

पानी की बौछार से डरता है बाघ


''भींगी बिल्ली मुहावरा प्रचलित है पर बाघ भी भींगने से डरता है ये बात अलग है की सुंदरवन या रणथम्भौर में बाघ पानी में जा कर शिकार खेलते फिल्माया जाता है,,और गर्मी के दिन वो खुद नहाता है,! बिलासपुर[छतीसगढ़] के जू 'कानन पेंडारी' में वाईट टाइगर की 'मेटिग' पर गजब की फिल्म बनी है ,,!

जिसमें पहले कुछ दिन बाघिन और बाघ को एक जाली के आड़ में परिचय कराया जाता है फिर मिलन के लिए बाद साथ रखा जाता है ..लेकिन बाघ का वर्चस्व बाघिन नहीं स्वीकारती ,,और वो गजब की लड़ाई करती है .. दोनों को कोई चोट न आ जाये इसलिए जू कीपर 'वाटर केनन' से उनपर बौछार करते है..! डंडे से डरते है पर कोई खास असर नहीं होता .. पर पानी की तेज फुहार आते ही लड़ाई बाद ..और गुस्सा कम ..! रुक रुक कर ये लड़ाई चलती है ,,! कभी कभी तो लगता है की नर डर गया,,पर बाद बाघिन एलाऊ कर देती है .

मेंटिंग के पहले शक्ति परिक्षण के लिए हुई गजब की या लड़ाई.. जिसमें पंजे दंत और गुराहट की सुंदर रिकार्डिग की गयी है ,,जिसे दिल मजबूत कर देखा जाना स्वाभाविक है .रह-रह कर हो रही लड़ाई को पानी की बौछार से ही अलग किया जाता रहा है ,,और कोई तरीका कारगर नहीं होता ..बाघ की आँख के ऊपर घाव भी हो जाता हैं ,,छायांकन जू के रेंजर श्री जायसवाल ने किया है ,ये फिल्म अपने में एक धरोहर और वन्यजीवों पर अध्ययन करने वालों के लिए विशेष अहमियत रखती है ..! 

[फोटो नेट की]