Tuesday 7 March 2017

गन शूटिंग और कैमरा शूटिंग में भेद होना चाहिए



ये फोटो हैं, Indian Courser, की पर इनमें एक फोटो है, गोंडावण याने ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की, जो अब भारत में कुछ जगह ही बचा है। 
सन 1966 के आसपास अपने पिताजी और उनके मित्रों के साथ शिकार में जाता था, तब तक ग्रेट इण्डियन बस्टर्ड की छतीसगढ़ में अकलतरा की बंजर भाटा जमीन पर मिलने की सम्भवना थी। ये मोर के आकार का भारी पक्षी है। जो उड़ान के पहले कुछ कदम दौड़ता। कई बार उसकी खोज में हॉफ टन ले कर गए, पर कभी नही दिखा। इधर उसे हुमा या सोहन चिड़िया भी कहते थे। शायद वो इसके पहले छतीसग़ढ से खत्म हो गया था। कुछ शिकारी थे,जिन्होंने इसका शिकार किया था।
बाद मैनें कादम्बनी में पढ़ा, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड का शिकार करने सऊदी अरब का शहज़ादा पाकिस्तान से राजस्थान तक पहुंचा, उसके पास बैलून टायर वाली कारें थीं,और शिकार के तमाम साज सामान, खूब विरोध हुआ। बाद 1982 दिल्ली प्रगति मैदान में मप्र के स्टाल में इस सुन्दर पक्षी के मैने बन्दी देखा। आज ये राजस्थान राज्य का पक्षी है।
अब बात करें इंडिया कौरसर की, अब जमाना बदल गया था। ये छोटा सा परिंदा आकार 26 सेमी, गर्मी के दिनों बिलासपुर के मोहनभाटा की बंजर जमीन पर प्रवास में आता है, बनावट में ये ग्रेट इंडियन बस्टर्ड से मिलता जुलता पर बहुत छोटा, तीन साल हुए, ये इधर काफी आये थे, करीब से फोटो मिल जाती, कहां इनका रहवास है, ये कभी किसी को न बताया। कुछ मुझे मन ही मन खफा भी हुए। फिर इनकी संख्या कम दिखी, खेती का एरिया भी बढ़ गया।
बीते साल कोरसर कुछ ही मोहनभाटा आए, इस बार छः की संख्या दिखी और फिर अब दो ही दिख रहे, हैं,। पंखों का रंग संयोजन की वजह उनकीं फोटो सुन्दर आती है। बस अब यदि इस फोटो के लोभ में कार से उसकी घेरा बन्दी करें, और वो अपने नन्हे पैरों से लगातार रुक रुक दौड़ता रहे, तब अरब के शहजादे की सोच याऔर हमारी सोच या कैमरा शूटिंग में कोई खास अंतर नहीं हुआ। यदि किसी परिंदे को हमारे कारण भागते रहना पड़े तो ये सही नहीं। ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के समान, इंडियन कोरसर लुप्तप्रायः पक्षी नहीं है। फोटो दूरी से भी आती है, पर फोटोग्राफर यदि और बेहतर फोटो के लिये,किसी परिंदे की फोटो के लिए वो हद पार कर जाए जो परिंदा नहीं चाहता हो,और ये सब एकाधिक हो तब, शायद हम जुनून में संरक्षण की हद भी पार कर रहे हैं। ( ,ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की फोटो गूगल से साभार )

ये फोटो हैं, Indian Courser, की पर इनमें एक फोटो है, गोंडावण याने ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की, जो अब भारत में कुछ जगह ही बचा है। 
सन 1966 के आसपास अपने पिताजी और उनके मित्रों के साथ शिकार में जाता था, तब तक ग्रेट इण्डियन बस्टर्ड की छतीसगढ़ में अकलतरा की बंजर भाटा जमीन पर मिलने की सम्भवना थी। ये मोर के आकार का भारी पक्षी है। जो उड़ान के पहले कुछ कदम दौड़ता। कई बार उसकी खोज में हॉफ टन ले कर गए, पर कभी नही दिखा। इधर उसे हुमा या सोहन चिड़िया भी कहते थे। शायद वो इसके पहले छतीसग़ढ से खत्म हो गया था। कुछ शिकारी थे,जिन्होंने इसका शिकार किया था।
बाद मैनें कादम्बनी में पढ़ा, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड का शिकार करने सऊदी अरब का शहज़ादा पाकिस्तान से राजस्थान तक पहुंचा, उसके पास बैलून टायर वाली कारें थीं,और शिकार के तमाम साज सामान, खूब विरोध हुआ। बाद 1982 दिल्ली प्रगति मैदान में मप्र के स्टाल में इस सुन्दर पक्षी के मैने बन्दी देखा। आज ये राजस्थान राज्य का पक्षी है।
अब बात करें इंडिया कौरसर की, अब जमाना बदल गया था। ये छोटा सा परिंदा आकार 26 सेमी, गर्मी के दिनों बिलासपुर के मोहनभाटा की बंजर जमीन पर प्रवास में आता है, बनावट में ये ग्रेट इंडियन बस्टर्ड से मिलता जुलता पर बहुत छोटा, तीन साल हुए, ये इधर काफी आये थे, करीब से फोटो मिल जाती, कहां इनका रहवास है, ये कभी किसी को न बताया। कुछ मुझे मन ही मन खफा भी हुए। फिर इनकी संख्या कम दिखी, खेती का एरिया भी बढ़ गया।
बीते साल कोरसर कुछ ही मोहनभाटा आए, इस बार छः की संख्या दिखी और फिर अब दो ही दिख रहे, हैं,। पंखों का रंग संयोजन की वजह उनकीं फोटो सुन्दर आती है। बस अब यदि इस फोटो के लोभ में कार से उसकी घेरा बन्दी करें, और वो अपने नन्हे पैरों से लगातार रुक रुक दौड़ता रहे, तब अरब के शहजादे की सोच याऔर हमारी सोच या कैमरा शूटिंग में कोई खास अंतर नहीं हुआ। यदि किसी परिंदे को हमारे कारण भागते रहना पड़े तो ये सही नहीं। ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के समान, इंडियन कोरसर लुप्तप्रायः पक्षी नहीं है। फोटो दूरी से भी आती है, पर फोटोग्राफर यदि और बेहतर फोटो के लिये,किसी परिंदे की फोटो के लिए वो हद पार कर जाए जो परिंदा नहीं चाहता हो,और ये सब एकाधिक हो तब, शायद हम जुनून में संरक्षण की हद भी पार कर रहे हैं। ( ,ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की फोटो गूगल से साभार )

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