कान्हा-बांधवगढ़ या अचानकमार टायगर रिजर्व जब आम सैलानी वन्यजीवों को
देखने जाता है, तब एक ही उद्देश्य होता है की, बाघ दिख जाए, बाघ दिखा तो उसका पैसा
वसूल और किसी कारण नहीं दिखा तो उसे प्रतीत होता है की जुएँ की बाजी हार गए. जंगल
में केवल बाघ ही नहीं और भी वन्यजीव है जो वन पर्यटन के समय दिखाई देते है, अगर
उनकी दुनिया को हम गाईड से पूछ कर समझे तो हमारा ज्ञान समृद्ध होगा.. नर बायसन की
तैलीय चमक को एक नजर देखो, खुश हो जाओगे, जंगल में चिड़ियों का मीठा बोलना, चीतल की
आवाज,साल की हरियाली मन को भा लेती है..! जंगल के जर्रे-जर्रे में आकर्षण है, बस
देखने वाला नजरिया चाहिए ..! जब ये नजरिया बन जाता है तो जंगल का सौदर्य दिखने
लगता है..!
बाघों की कम होती संख्या और उसको बढ़ाने के लिए ये जरूरी ही की बाघों
के नैसर्गिक जीवन में और खलल न पहुंचे,इसलिए कान्हा-बांधवगढ़ जैसे नेशनल पार्क में ‘बाघ
दर्शन’ का खिलवाड़ बंद कर दिया गया है. पहले यहाँ बाघ हो खोज कर सैलानियों को हाथी
से ले जाकर बाघ दिखाया जाता था. लेकिन अब जिप्सी से जंगल भ्रमण में ही बाघ दिखाया
जाता है..! घंटों बाघ घिरा रहता और बाद वो इसका आदी हो जाता,ये उसके स्वभाव के प्रतिकूल था..!
अचानकमार जैसे टाइगर रिजर्व
जहाँ बाघ के दर्शन कम होते हैं, वहां बाघ के बजाय सैलानियों को इको पर्यटन की तरफ
केन्द्रित होना जरूरी है..यहाँ बायसन,साम्भर, चीतल देखे जा सकते हैं..वन विभाग ने
ऊँची जगह से जंगल की विहगम छवि निहारने टावर बनवाये है..ये फोटोग्राफी के लिए बहुत
बढ़िया स्थल है,एक छोटी से आंख की पुतली से 360 अंश पर निहारना क्या एक बाघ देखें
जाने से सुखद नहीं..! जो जंगल वन्य जीवो को आश्रय देते है और पृथ्वी पर जिनका
वितान छाया है वो कुदरत का अनोखा करिश्मा सुकून देने वाला होता है..!
जंगल में परिंदों के मीठी आवाज सारे दिन ही नही,रात में भी जंगल को जीवित रहती
है,’ब्रेनफीवर’ की तो रात-दिन ‘पी कहाँ’ की रट रहती है, मोर की तेज केका ध्वनि. कोयल
के सुर, और ‘बर्ड फोटोग्राफी’ का जो मजा है वो अपने में अनोखा है..बाघ दिखा तो कोई
बात नहीं, उसकी जिप्सी से फोटो ले, अगर न दिखा तो मायूस न हो. वैसे भी ये मान्यता
है कि जंगल में बाघ की धारियां उसे छिपाए रखती है, जिस वजह आप बाघ को एक बार देख
पाते हैं और वो आपको दस बार, इस लिए मानो
आपको बाघ न दिखा, पर उसने आपको देख लिया होगा...![पहली फोटो नेट की बाकी मेरी]
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