Wednesday 31 December 2014

बकरी माँ ने चीतल शावक को बचाया

छतीसगढ़ के बिलासपुर जिले  क  जू कानन  पेंडारी में बकरी ने माँ बनकर  अपनी माँ से बिछड़ कर यहाँ पहुंचाए चीतल शावक की जान बचाई ,,पाली के जंगल में ये शावक माँ से अलग होने के बाद  भटक गया था ,,जो किसी वन कर्मी को मिला ,,जब ये बच्चा जू पंहुचा तब भूखा था ,,जू के रेंजर टीआर जायसवाल और डाकटर पीके चन्दन  ने उसके लिए एक बकरी माँ का इंतजाम किया और इस माँ ने उसे बचा लिए है ,,इसके पहले एक लायनेस ने जब  अपने बच्चे को दूघ नहीं  पिलाया तब उसके लिए कुतिया माँ का प्रबंध किया गया था ,,ये  शावक  प्रिंस नाम का शेर बन चुका है और पांच साल का है ,,

Monday 29 December 2014

किसान की जंगल में परेशानी



खेत में इतने कपड़े, क्या वो घर के कपड़े किसान सूखा रहा है,ये ऐसी कोई बात नहीं,दरअसल ये मामला कुछ अलग है ,,!
कल जब हम खोंद्रा के जंगल पहुंचे तो कुछ पल के लिए हैरत में आ गए,पर बाद मामला समझ आया किसान ने आलूं बोये है फसल तैयार है और वन्य प्राणी रात आ कर चर न जायेया बर्बाद न करें इसलिए ये सब किया है !

,अपने घर के कपड़ों के आलावा किसानों ने चुनाव के बेनर पोस्टर भी खेत में लगा दिए हैं ताकि वन्यजीवों विशेषकर  भालू और  जंगली सूअर आलू चाव से खाते हैं, जबकि चीतल दीगर फसलों  को सफाचट कर  जाते  है ,,, को लगे यहाँ आदमी हैं और वे दूर रहें ,,,! हाय अन्नदाता तेरी मज़बूरी और ये हालत..!!

Saturday 6 December 2014

चीतल के शावक ठण्ड में हुए




'' कुदरतबिगाड़ती है, तो संवारती भी है,उसने शिकार और शिकारी के बीच बराबरी का खेल रचा है !!
बीते साल ठंड में बिलासपुर के चिड़िया घर कानन पेंडारी में 21 मादा चीतल और उनके छौनों की मौत हुई थी,तो इस बार यहाँ ठण्ड में एक पखवाड़े में सात छौनों का जन्म हो चुका और उनका परिवार बढ़ कर 47 हो चुका है,कुछ छौने और होने वाले है ,,! इनकी ममता में अपने पराये का बच्चों के साथ कोई भेद नहीं.. माँ दूजे के बच्चे को भी अपना दूध पिला देती हैं ,!
चीतल के छौने जन्म लेने के बाद आधे घंटे में खड़े हो जाते हैं, और चौबीस घंटे में कुछ दौड़ने योग्य ,,कुदरत ने ये खूबी इसलिए दी है की वो हिंसक जीवों से अपनी रक्षा कर सकें,जब कि हिंसक जीवों की शावक अविकसित जन्म लेते हैं,आँखे बंद और लाचार से ..यदि वो चीतल के छौने की तरह विकसित होते तो माँ शिकार के लिए गर्भावस्था में फुर्ती खो बैठती ,,! वाह रब.. तेरा निजाम, उसको सलाम ..!!
[फोटो सौजन्य- टीके जायसवाल ]

Tuesday 2 December 2014

अचानकमार,खुला बेरियर लगा आदेश




अचानकमार टाइगर रिजर्व के मुहाने में बसा शिवतराई जहाँ एक बेरियर खुला है और कोई गार्ड नहीं,याने इस रस्ते बेरोकटोक पार्क में घुसपैठ हो सकती है ..! मैंने रविवार को इस राह से लकड़ी भरा ट्रक इस राह से निकलते देखा जिसमें ऊपर 'जलावन के गठ्ठे रखे थे', फोटो में इस राह में वाहनों के टायर के निशान सड़क पर दिख रहे है ,, ! पता चला मानसून में जब पार्क बंद हुआ तब बेरियर में गार्ड तैनात था फिर पार्क शुरू हुए एक माह हो गया है कोई माई-बाप नहीं है ,,!
जो ट्रक लकड़ी ले कर निकला वो वैध ये या अवैध या पता नहीं पर बेरियर की इस राह से 14 किमी भैंसाघाट होते हुए सिहावल सागर और जलदा ,छपरवा तक जाया जा सकता है..जब बिलासपुर-अमरकंटक सड़क के 'चौरहे' के बेरियार का ये आलम है तो भीतर में यदि कोई बेरियर होगा तो वो क्या इससे अलग होगा ,,!
कुछ ने बताया इस राह पर पहले खाई खोद दी थी पर अब वो भी पाट दी गई है ,! ये इलाका वो है जहाँ वन्यजीव दिखाई देते हैं ,,,! जरा सी लापरवाही उनकी सुरक्षा में सेंध साबित हो सकती है ,,!

Tuesday 18 November 2014

जू की टाइग्रेस को गोद लिया

''हो सकता है कुछ दोस्त ये  नहीं जानते हो की जू के वन्यजीवों को भी गोद लिया जा सकता है, छतीसगढ़ ले बिलासपुर जिले के कानन पेंडारी जू की टाइग्रेस 'आशा' को यहाँ के डा,मनीष बुधिया और डा.रश्मि बुधिया के अपने पुत्र श्रेयांश के जन्मदिन पर गोद लिया,जिसमें उन्होंने 1 लाख 80 हजार का चेक उनके एक साल के खाने और रख्राव के लिए वन विभाग के सौंप दिया है.वन्यजीवों से प्यार रखने वाले इस परिवार ने वहां सुपुत्र का जन्मदिन भी मनाया,डीऍफ़ओ सत्यप्रकाश मसीह ने उन्हें गोद्नामें से सम्बन्धित प्रमाण दिया है ,,!!
इसके पहले छतीसगढ़ हाईकोर्ट ले तत्कालीन चीफ जस्टिस यतीन्द्र सिंह ने भी इस जू के वन्य जीव को गोद ले चुके हैं ,,! ये योजना जीवों से जुड़ाव बढ़ाने के लिए राज्य में चलायी जा रही है ,,,!

Friday 10 October 2014

मवेशी की घंटी बाघ के लिए जानलेवा


ये सत्य है पर निवेदन ही ये बात ज्ञान के लिए है शिकार के लिए नहीं ,,,!
छतीसगढ़ ही नहीं और भी कई जगह होगी जहाँ तंग करने वाले या आदतन झुण्ड दे भाग जाने वाले मवेशी के गले में लकड़ी की बड़ी सी घंटी बांध दी जाती है,जब वो चलता है तो इसकी खड़-खड़ की ध्वनि दूर तक सुनाई देती है ,,रात जंगल में बिछड़े किसी मवेशी के गले में बधी ये घंटी तो मील भर दूर से सुनाई देती है ..!

मवेशी 'बदरी' से बिछड़ा तो चरवाहा इस आवाज को सुन तक उसको हांक ले जाता है ..पर बाघ भी इस आवाज को खूब पहचानता है और वो भी बिछड़े मवेशी तक जंगल में पहुँच जाता है ..कभी जब शिकार होता था तब शिकारी इस घंटी को ले कर रात मचान में बैठता...मचान के नीचे कुछ दूरी पर पड़वा बांध रखता.. ये जगह वो होती जहाँ से रात को बाघ की संभवित आवाजाही रहती है ! शिकारी मचान से रह-रह कर इस घंटी को बजता..बाघ आदतन इसकी आवाज पहचानता है वो किसी बिछड़े मवेशी की तलाश में उस जगह पहुँच जाता... जहाँ शिकारी रात मचान में चढ़ा होता और जानवर बांध कर इंतजार कर रहा होता, जैसे बाघ बंधे जानवर पर टूट पड़ता शिकारी की गन गरजती और एक बाघ कम हो जाता o,,!

शिकार प्रतिबंधित है.फिर भी बाघ बढ़ नहीं रहे याने साफ है बाघ मारे जातें हैं  ..इस पोस्ट को पढ़ कर आला अफसरान यदि सेंचुरी और टायगर रिजर्व में मवेशियों के गले से घंटी बंधना प्रतिबंधित कर देते हैं  तो शिकार का एक दरवाजा बाद हो जायेगा ,,!  निवेदन बाघ को बचाने में जुटे मेरे मित्र भी इस और प्रयास करें..!]

Thursday 9 October 2014

एक नवम्बर से पार्क खुलेगा



एक नवंबर से अचानकमार टाइगर रिजर्व सैलानियों के लिए फिर खुल जायेगा,वाइल्ड लाइफ वीक में पेंटिग स्पर्धा में विजयी रहे छह प्रतिभागियों को तब इस पार्क की सैर कराई जाएगी ,, पार्क के फील्ड डायरेक्टर तपेश झा ने वाइल्ड लाइफ वीक के समापन समरोह में शालेय छात्रो को विश्वास दिलाया की पार्क में अगले साल जब वे पालीथीन चुनने आयेंगे तो स्वच्छता मिलेगी..आयोजन बिलासपुर के आईएम्ए हाल में कल शाम हुआ. उन्होंने कहा पार्क में टाइगर की संख्या बढ़ने पर ही उनके और उनकी टीम के कार्यो को सफलता मिलेगी ..!

वन विभाग और नेचर क्लब की सहभगिता में इस अवसर पर वन्यजीवों को फोटो लगाई गई थीं जो स्थानीय शौकिया फोटोग्राफर के वन्यजीवन के जुड़ाव को प्रदर्शित कर रहीं थीं ,,इस अवसर पर पार्क के अधिकारी सी एल अग्रवाल श्री शर्मा, श्री नाथ के अलावा वाइल्ड लाइफ लवर मनसूर खान .प्रथमेश,अनुराग,विवेक जोगलेकर,अमिताभ गौड़,उपेन्द्र दुबे, शैलेश शुक्ला ,शिरीष,उदय श्याम कोरी .और बड़ी संख्या में मीडियामेन तथा वन्य प्राणी सप्ताह को सफल बनाने वाले छात्र-छात्राए उपस्थित थीं ..जिन्हें प्रमाण पत्र वितरित किये गए !एक फोटो मेरी दो इधर-उधर से मिलीं ]

Monday 29 September 2014

टाइगर रिजर्व से पोलीथीन छात्रों ने बिना



''वन्य प्राणी सप्ताह के पहले छात्रों न अचानकमार टाइगर रिजर्व से गुजरने वाले सड़क के दोनों तरफ से प्लस्टिक,पोलीथीन जैसे पदार्थ बोरी भार भर के चुने..ये सब उने सैलानियों की करतूत जो पार्क में वो कचरा फैंक जाते हैं जिसे खा कर वन्यजीव बेमौत मरने की आशंका रहती है..! पार्क को सैरगाह मान कर सड़क के किनारे शराबखोरी करने वालों की खाली बोतलें और 'चखना' के खाली पैकट भी बड़ी तादात में चुने गए ,,!
करीब पैसठ किलोमीटर लम्बी इस सड़क पर बिलासपुर के प्रतिष्ठित सिद्धि विनायक संसथान, कोटा के डीकेपी केवंची के आदिवासी छात्रावास के 160 छात्र- छात्राएं शामिल हुई,, सबको एक निश्चित दूरी में अलग जत्थे में ये काम करना था. विभाग और नेचर क्लब बिलासपुर द्वारा आयोजित इस आयोजन में छात्रों को वनसम्पदा से परिचय कराया गया..! अचानकमार का रेस्ट हॉउस अब म्यूजियम में तब्दील हो गया है,उसे भी सबने देखा ,,!

कार्यक्रम के अंत में पार्क के अधिकारी सीएल अग्रवाल ने छात्रों को सम्बोधित किया ,उन्होंने छात्रों से अनुभव व सुझाव भी चाहे आयोजन की सफलता में नेचर क्लब के संयोजक मंसूरखान,विवेक जोगलेकर, अक्षय अलकरी,विक्रम दीवान अमिताभ गौड़ ,स्कूल स्टाफ, वन अधिकारी पीके केशर ,रेंज आफिसर नाथ जुटे रहे ..!

Wednesday 24 September 2014

दिल्ली जू के दुर्दिन

मेनका गाँधी ने केन्द्रीय राज्य मंत्री के रूप में काम कर दिल्ली जू के ऊँचे दर्जे का बना दिया था आज वो सिलसिला होता तो सफ़ेद बाघ में बाड़े में कल गिरे युवक को कदाचित बचाया जा सकता था.
1. फोटो में युवक जिस जगह पर भयभीत बैठा है,और बाघ खड़ा है मेरे को लगता है ये दीवार के बाद खाई है जिसमें पानी होना था.. जिससे बाघ और सैलानी के एक सुरक्षा परत और बनती पर ये बारिश के दिनों फोटो में भी सूखी दिख रही है..!
2.युवक के करीब पन्द्रह मिनट तक नहीं मारा और जू प्रबन्धन उसे बचा न सका,,शायद कोई कारगर इंतजाम भी न थे.. !
बच सकता था युवक अगर ये इंतजाम होते ..!
अ. गन से धमाके किये जाते या धरपटक फटके फोड़े जाते, जो जू कीपर के पास होने थे..
ब. वाटर केनन के बंदोबस्त होता तो उसकी बौछार से बाघ भीगने से बचने भाग जाता, मैंने बिलासपुर के जू में बाघ और बाघिन में लड़ाई में इसका उपयोग देखा है किस तरह दोनों हिंसक लड़ाई बंद कर देते हैं ,,इसकी फिल्म मौजूद है .!
इस हादसे से दो बात साबित हो गयी है. पहला की जू प्रबन्धन की सोच कम,बचाव के इंतजाम कम है और चिड़ियाघर में जन्म रहे सफ़ेद बाघ में शिकार की सहज आदत मरती नहीं,,!
सन 1950 के करीब रीवा के महाराज मार्तण्ड सिंह ने जंगल से पहला सफेद शावक पकड़ा जिसका नाम मोहन दिया गया,जू के सारे सफ़ेद बाघों का वो पूर्वज है .!
मेनका गाँधी जब पर्यावरण राज्य मंत्री थी तब उद्योगों पर सख्ती बरत रही थी इस लाबी ने एक बड़ी लकीर केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री के रूप में खिंचवाई और मेनका गाँधी का कार्य क्षेत्र बस दिल्ली का चिड़िया घर कर दिया गया ,,तब कार्टून में मेनका को चिड़ियाघर के एक पिंजरे में बंद दिखाया गया ..जवाब में मेनका ने कहा-मुझे जो काम दिया गया है बेहतरी से करुँगी और इस जू को दुनिया का में बेहतर जू बना दूंगी ..और उन्होंने इसका कायाकल्प करके दिखाया ..! फोटो नेट की है]

Sunday 14 September 2014

पानी की बौछार से डरता है बाघ


''भींगी बिल्ली मुहावरा प्रचलित है पर बाघ भी भींगने से डरता है ये बात अलग है की सुंदरवन या रणथम्भौर में बाघ पानी में जा कर शिकार खेलते फिल्माया जाता है,,और गर्मी के दिन वो खुद नहाता है,! बिलासपुर[छतीसगढ़] के जू 'कानन पेंडारी' में वाईट टाइगर की 'मेटिग' पर गजब की फिल्म बनी है ,,!

जिसमें पहले कुछ दिन बाघिन और बाघ को एक जाली के आड़ में परिचय कराया जाता है फिर मिलन के लिए बाद साथ रखा जाता है ..लेकिन बाघ का वर्चस्व बाघिन नहीं स्वीकारती ,,और वो गजब की लड़ाई करती है .. दोनों को कोई चोट न आ जाये इसलिए जू कीपर 'वाटर केनन' से उनपर बौछार करते है..! डंडे से डरते है पर कोई खास असर नहीं होता .. पर पानी की तेज फुहार आते ही लड़ाई बाद ..और गुस्सा कम ..! रुक रुक कर ये लड़ाई चलती है ,,! कभी कभी तो लगता है की नर डर गया,,पर बाद बाघिन एलाऊ कर देती है .

मेंटिंग के पहले शक्ति परिक्षण के लिए हुई गजब की या लड़ाई.. जिसमें पंजे दंत और गुराहट की सुंदर रिकार्डिग की गयी है ,,जिसे दिल मजबूत कर देखा जाना स्वाभाविक है .रह-रह कर हो रही लड़ाई को पानी की बौछार से ही अलग किया जाता रहा है ,,और कोई तरीका कारगर नहीं होता ..बाघ की आँख के ऊपर घाव भी हो जाता हैं ,,छायांकन जू के रेंजर श्री जायसवाल ने किया है ,ये फिल्म अपने में एक धरोहर और वन्यजीवों पर अध्ययन करने वालों के लिए विशेष अहमियत रखती है ..! 

[फोटो नेट की]

Sunday 31 August 2014

कुतिया माँ का दूध पी का बना शेर



''कौन मानेगा जिसकी माँ शेरनी ने अपने शावक को पैदा होने के बाद दूघ न पिलाया हो और कुतिया माँ के दूध पर पला हो वो बड़ा हो कर जब गरजेगा तो पूरे चिड़ियाघर में दहाड़ गूंजेगी, ये है- बिलासपुर के कानन पेंडारी जू का 'प्रिंस'..करीब पांच साल का है ओर ये शेर दो शावकों का पिता बन चुका है. इसे करीब से देखने में दहशत होती है,,!

इसकी माँ,यमुना और पिता सुलतान को कोरबा जिले में आये किसी सर्कस से यहाँ लाये गए थे, माँ ने पैदा होने के बाद जब शावक को दूध न पिलाया तब उसके लिए अलग कर 'गोल्डन रिटीवर' नस्ल की कुतिया माँ का इंतजाम किया गया,,उसका एक पिल्ला तब प्रिंस से उम्र में बड़ा था,कोई 45 दिनों में प्रिंस खेल में उसे पर भारी पड़ने लगा,अगले एक माह में उसकी ये माँ खेल में उससे थक जाती,,! तब तक ये मांस खाना सीख चुका था और फिर इस माँ को भी अलग कर दिया गया ,,!

प्रिंस आज भी जू कीपर रमेश साहू और सोनू यादव को पहचानता है और उनके दुलार का भूखा है,डिप्टी रेंजर ठा विश्वनाथ सिंह भी उसके बचपन का साथी है जिसे कैज के करीब देख वह दौड़ कर पास चला आता है. उनके सहलाने पर प्रिंस खुश होता है,उन्होंने बताया जब तक प्रिंस अपनी शेरनी से नहीं मिला था उसका बर्ताव हमसे बच्चे के समान था पर अब वो ' मर्द' है ओर बरताव बदल गया है,, वो दबंग हो चुका है ..लोग तो दूर से ही उसे देखते हैं,

[फोटो - उपलब्ध, जू के अधिकारी रेंजर श्रीजायसवाल से जो अच्छे फोटोग्राफर भी हैं]

Sunday 10 August 2014

जू की शान हिप्पोपोटोमस





'''बारिश के इन दिनों हिप्पो [हिप्पोपोटोमस] मुदित है,विशाल का नर 'गजनी' का परिवार टेंक के पानी में अटखेलियाँ करता है, जिसे बिलासपुर के कानन पेंडारी जू में जिज्ञासा से देखा जाता है.हिप्पो मूलतः अफ्रीकन है,पर ये नर-मादा दिल्ली के जू से लाये गए है, उनका एक बेटा भी जन्मा है..! ये बच्चा माँ सजनी ने पानी से बाहर कीचड़ में दिया और फिर एक दिन में वो पानी में चला गया ,,! इसका नाम रजनी दिया गया है ..!

हिप्पो करीब बारह फीट लम्बा,पांच फीट ऊँचा,चार टन भरी स्तनपायी, शाकाहारी जीव है, मुझे तो ये आसली भी लगा, पार्क के अधिकारी विश्वनाथ ठाकुर ने दूर हिप्पो गजनी कह कर बुलाया तो वो जमीं के नहीं आपितु पानी से तैर कर चला आया साथ उसका परिवार भी जानते थे खाने को कुछ मिलेगा,,! गर्मी के दिनों ये शाम पानी से बाहर आता या पानी में खेलता है, पर बारिश में ये अपने बाड़े में किनारे घास चरता है,,!

गर्मी के डर से पानी में रहने वाला ये जीव शांतिप्रिय है.धूप और ताप से इसके तन से वसा गुलाबी युक्त तरल बह निकालता है जो इन दिनों नहीं है..!
 (5 photo

Wednesday 6 August 2014

छातिम का जानलेवा पेड़ ..



स्वास्थ्य के लिए खतरनाक छातिम का पेड़ छतीसगढ़ में छा गया है,अब इसके लगाने पर सवाल उठ रहे है,छातिम को सतावन या सप्तपर्णी भी कहा जाता है..ये नाम इसकी सात या सात से आधिक पत्तों के साथ होने के वजह से है,अब ये माना जाने लगा है कि इसके हवा में उड़ते परागकण से मानव को श्वांस संबधित रोग होते है,सर्दी-खांसी भी इस वजह होती है,,!

राजधानी रायपुर में छातिम को उखड़ फेंकने का अधिकारीयों ने दावा किया गया है,लेकिन बिलासपुर शहर में ये गली-कूचों में लगा है,दीगर शहरों का भी यही हाल है,दरअसल ये पेड़ जल्द बढ़ता है,मवेशी नहीं खाते,और छायादार है,इस लिए सड़कों के किनारे कुछ सालों में सरकारी तौर पर इसे खूब लगाया है..! सरकारी बागीचे,सड़क के दोनों तरफ रेलवे का इलाका सब में छातिम छाया है ,! सुबह सैर करने गए और रोग ले आये..!


छातिम के कुछ तरफदार भी हैं,जो इसे औषधीय गुणों वाला भी बताते है,पर गुण क्या हैं ये नहीं बता पाते..! छतीसगढ़ के एक अख़बार ने तो इस पेड़ को देश के शहरी इलाके में बेन कहा है दूसरे ने इसे 'राक्षसी पेड़' बहरहाल इस पेड़ के फूल बरसात बाद आयेंगें,,! तब तक इसके भाग्य का फैसला हो जायेगा ,,! लेकिन जिन्होंने इसे बड़े पैमाने पर लगवाया है उनका कभी बाल बांका नहीं होगा,,![फोटो नेट से साभार]

Monday 4 August 2014

जू के साथ पक्षी विहार की सम्भावना




कहते हैं कुदरत एक हाथ से लेती है,तो दूजे दे देती है,बिलासपुर के काननपेंडारी जू में वन्यजीवों के मौत के बात कुदरत ने यहाँ पक्षियों का मेला भी लगाया है. वंशवृद्धि के लिए यहाँ पहुंचे ओपन बिल स्टार्क, कर्मोरेंट,विस्लर डक.और इग्रेट, रंग भेद,ऊंच-नीच के भावना से परे,पेड़ों पर कालोनी बना कर बड़ी संख्या में डेरा डालें हैं,,! इसके साथ कुदरती पक्षी विहार इस जू के साथ विकसित होने की संभावना उदित हो चुकी है. बस जरूरत है पहल की..!
पत्रकार विश्वेश ठाकरे और कैमरामेन उमेश मौर्य के साथ भरी बरसात मैं कानन पेंडारी गया था,शेरों के शावकों को देख रहे थे तभी . इस जुलाजिलपार्क के वन्यजीवों से दिल से जुड़े अधिकारी ठाकुर ने इस परिंदों के इस मेले की जानकारी दी,फिर क्या था, हम सबका रुख इस ओर था, रिमझिम फुहार के बीच पहले आकाश में बिजली चमकी और फिर गोले जैसी आवाज से बिजली कड़की,बड़ी संख्या में चिड़िया बसेरा छोड़ आकाश में उड़ चली, इतनी चिड़िया आकाश में उड़ती देख मैं बोला. अब बरसात में आगे नहीं जाते,चिड़िया तो उड़ गईं,पर श्री ठाकुर ने कहा- ये तो कुछ नहीं,चलिए वहां इससे ज्यादा पेड़ों पर होंगी, राह में पानी का सांप भी मछली की घात में दिखा,,!
जब तालाब के किनारे पहुंचे तो देखा, लगा मानों 'भरतपुर पक्षी विहार' के किसी कोने में हैं ,ये सारे पक्षी भारतीय है और स्थानीय प्रवास पर हैं, पर इसके आकार को देख न जाने क्यों प्रवासी विदेशी पक्षी माना लिया जाता है,,! चौमासा व्यतीत कर अपनी नई पीढ़ी के साथ ये उड़ जायेंगे,कुछ यहाँ रह जायेंगे ,,कुदरत ने तो मेला रच दिया ..अब कानन जू प्रबंधकों की बारी है,, करीब सात एकड़ के इस तालाब में शीतकालीन प्रवासी परिंदों को आकर्षित करने कुछ बत्तख यहाँ रखी जाए कुछ जलीय वनस्पति हो, परिंदों की सुरक्षा यहाँ है,यहाँ साल दर साल विदेशी परिंदे पहुँचने लगेंगे..ये इस क्षेत्र के तालाबों में हर साल आते है,पर ,उनकी संख्या और प्रवास के दिनों में कमी होती जा रही है,,वह भी कुछ परिमार्जित होगी..![फोटो- जितेन्द्र ठाकुर से]

Monday 28 July 2014

बाघ बचाएं ..



बिलासपुर के कानन पेंडारी जू में सफ़ेद टाइग्रेस 'सिद्धि' के शावक ने आंख खोलने के पहले दम तोड़ दिया है ,पीएम रिपोर्ट में शावक के गले में माँ के दन्त गड़ना पाया गया है, सभी जानते है,जंगल में दूर तक आजाद राज करने वाला बाघ पिंजरे में तनाव में इघर-उधर बेचैनी और तनाव में रहता है,इस वजह माँ शावक का परित्याग कर देती है कभी- कभी मार देती है, ये मामला भी मुझे इस तरह का लगता है.!

 इस तरह के मामले पहले भी रिकार्ड किये गए हैं,,भला कोई माँ ऐसा कर सकती है ,ये बात जेहन में आती है,, बाघ आजाद जीव है,सम्भवत वो खुद बंदी होने के बाद भी अपने शावक के ये जिन्दगी नही देना चाहती..! एक सवाल है यह भी है की  करीब 56 साल से पिंजरे में रह रहे सफ़ेद बाघों की जंगल में वापसी कब होगी..या फिर इनको शाप है कि.. सारी पीढियां उम्र कैद सारे जू में कटेंगी..!इस तरफ कोई कदम नही उठता दिखाई देता, जंगल का कर्ज व्याज सहित अदा करना होगा ,! पर ये जटिल काम है,,! 

विश्व टाइगर दिवस पर ये संकल्प तो लिया जा सकता है कि, टाइगर रिजर्व में वन्यजीवों से प्रेम रखने वाले प्रशिक्षित लोग ही काम करेंगे न की बारह्सिंधा और नर चीतल में अंतर न समझने वालों को पदस्थ किया जाये..! और सभी स्माल जू में अधिकार सक्षम क्यूरेटर की नियुक्ति की जाए और नासमझ अधिकारों के अधिकारों को विदा किया जाए जो किसी भी वन्यजीव की मौत का कारण लालबुझकड की तरह बूझ कर मीडिया को भी गुमराह करते हैं,,!  

सेंचुरी से गुजरने वाली सड़क पर रात दिन आवजाही,उनके आवास में खलल डालती हैं, गाँव टाइगर रिजर्व में जमें हैं, केटल कैम्प हटाओ तो फिर बस जाते हैं, सैलानियों और फोटोग्राफी के शौक ने जानवरों को अर्धपालतू बना दिया है.सही तरह से पता नही कितने वन्य जीव किस सेंचुरी में हैं ,पर आस जीवित है की बाघ को बचाना है, कोई नहीं हम ही उसे बचायेंगे [सेव टाइगर] 

Sunday 20 July 2014

सफेद बाघिन का गोरा शावक

'' बिलासपुर [छतीसगढ़] के कानन पेंडारी जू में सफ़ेद बाघिन ने एक सफेद शावक को जन्म दिया है इसके साथ ही विश्व के सफ़ेद बाघों के परिवार में एक सदस्य का और इजाफा हो गया है.
इस शावक के माँ और बाप दोनों गोरे हैं.जू के चिकित्सक डा पीके चंदन ने बताया की  105 दिन की गर्भावस्था बाद इसका जन्म हुआ है.फोटो डीएफओ हेमंत पांडे ने whatsaap पर उपलब्ध की.जिस कारण ये पोस्ट संभव हुआ.

विश्व में अब सफ़ेद बाघ जंगल में नहीं है, रीवा के महाराज मार्तंड सिंह की ये विश्व को देंन है,करीब पैसठ साल पहले उन्होंने शिकार के दौरान माँ बाघिन के साथ एक शावक देखा जो माँ के रंग से भिन्न था.बाद महाराजा ने उसे पकड़वाने में सफलता पाई जिसे मोहन नाम दिया गयाकोई अलग प्रजाति नहीं कुदरत का करिश्मा जींस के कारण है,, आज जो भी सफेद बाघ परिवार है मोहन का वंशज है ..!

टाइग्रेस सीता आज भी याद की जाती है




''बांधवगढ़ की विश्व प्रसिद्ध टाइग्रेस सीता अपने शिकार के डेढ दशक बाद भी जानी जाती है,कभी इसे बांधवगढ़ में अपने शावकों को पाले जाने और उनके फिल्मांकन के लिए,पर ये मौका था वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इण्डिया दवारा आयोजित तीन दिनी ट्रेनिंग के समापन सत्र का .

अचानकमार टाइगर रिजर्व के बफरजोन में शिवतराई गाँव में आयोजित इस आयोजन में पचास मैदानी वन कर्मियों को वाइल्ड लाइफ एक्ट की जानकारी दी गई.बताया गया शिकार या वन्यजीवों की तस्करी और होने वाले अपराधों को कैसे रोका जाए,यदि हो तब उसकी विवेचना, किस तरह तथ्य संग्रह किये जाए ताकि अदालत में आरोपी को सजा मिल सके.इसके लिए शिकारी और अधिकारी बन कर जंगल  में विवेचना का प्रेक्टिकल कराया गया ..! इस तरह के आयोजन आगे भी होने की बात की गई .

समापन समारोह में बंधवगढ़ की सीता के शिकार का मामला भी उदहारण बन सामने आया गया,इस मामले से जुड़े उमरिया के वकील एस.कुमार सोनी ने भी इस चर्चित मामले का ब्यौरा दिया..वन्यजीवों के लिए कार्यरत संस्था के रीजनल हेड डा.आर पी मिश्रा ने वन कर्मियों को ट्रेनिग दी.उन्होंने सभा को बताया की अब तक उनकी संस्था बीस राज्यों के बाईस हजार कर्मियों को ट्रेंड किया गया है और आकस्मिक दुर्धटना बीमा योजना के तहत कवर किया गया है.
वनकर्मियों को टाईगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर तपेश झा ने उपयोगी किट का वितरण किया,टाइगर रिजर्व के उप निदेशक सी एल अग्रवाल सहित वन विभाग के आला अधिकारी.पत्रकार कमल दुबे राजेश दुआ भी मौजूद थे..! 

Thursday 10 July 2014

जू में जन्मे वाईपर के सपोले



बिलासपुर[छतीसगढ़] के जूलाजिकल गार्डन कानन पेंडारी में रसल वाईपर सांप के 7 सपोले जन्मे हैं. इस प्रजाति के सांपो के विषय में माना जाता है कि. वे सीधे बच्चे देते है,पर यहाँ जो मामला सामने आया है वो कुछ भिन्न है,पतले लिजलिजे अंडे से ये सपोले कुछ मिनट बाद खुद बाहर आये फिर एक ही दिन में इनकी लम्बाई छह इंच से बढ़ कर एक फिट के करीब हो गई ,,पहले फोटो में वो कोमल कवच है जिसे से सपोले निकले है, दूसरी फोटो में स्वस्थ सपोले और तीसरी फोटो गूगल से ली गई है,,!

डीएफओ हेमंत पाण्डेय ने बताया कि इस पार्क में नौ प्रजातियों के पैसठ सांप रखे गये हैं,जिनके शीतकाल की सुसुप्तावस्था  लिए 'हाइबरनेशन केज' बनाये गए हैं,,! वाईपर भारत का जहरीला सर्प है, इसकी पूंछ में विशेषता होती है कि ये उसके सेल को रगड़ के झुनझुनाहट भरी ध्वनि कर सामने वाले को खतरे की चेतावनी देता है, मुझे याद है कोई तीस साल पहले हमारे केले की बगान में एक बड़ा वाईपर पकड़ा लिया गया,,मैं जब उसे किसी को दिखने के लिए बोरे कप  ऊपर से खोलता तो वो खतरे की चेतावनी देता ,,! एक सपेरे को जब मैंने ये सांप देना चाहा तो वो बोरे से सांप देखने के बाद दो कदम पीछे हट कर बोला,,' दे ह पोसे के सांप नो है'.!! बहरहाल जो सपोले पार्क के पर्रिवार में आये है उसको हाइबरनेशन केज में शिफ्ट किया है,,!!


नेट से मिली जानकारी के अनुसार--वाइपर जाति के एक किस्म के सांप के सिर पर एक छोटी सी हड्डी ऊपर उठी हुई रहती है , जो सींग जैसी लगती है। अत: उससे सींग वाले सांप का भ्रम होता है।
वाइपर जाति का रेगिस्तान में रहने वाला सांप बहुत खतरनाक होता है। उसकी पूंछ में कई छल्ले बने हुए होते है, जब वह चौंकता है या उत्तेजित होता है तो उन छल्लों में कंपन से जोरदार झनझनाहट की आवाज आने लगती है, शायद इसलिए इसका नाम रेटल स्नेक झुनझुना सांप पड़ा।''

Saturday 14 June 2014

वंशवृद्धि में लिए परिंदों ने, टापू में बनाई कालोनी



मेघ कुछ देर से सही पर,जन्म मरण का चक्र कहाँ रुकता है? पेड़ पर पत्ते बन परिंदों ने सुरक्षित ठिकाने पर अपनी अनोखी कालोनी बना ली है,इनमे कोई रंग भेद नहीं,काले कर्मेरेंट[पन कौवा है,सफेद इ ग्रेट याने सफ़ेद बड़े बगुले..और हैं-ओपन बिल स्टार्कजिसका बड़ा आकार देख प्रवासी सरस कहने कभी भूल करते हैं,,! परिंदों के कलरव से इस टापू में रौनक आ गई है !
ये कालोनी है अंग्रेजों दवारा बनाया गया खुटाघाट का निर्जन टापू चारों तरफ पानी,किले के समान महफूज़, बिलासपुर से कोई तीस किमी दूर,राह में माँ महामाया की नगरी रतनपुर जहाँ सदियों कलचुरियों ने राज किया,हर साल परिंदे इस टापू पर वंशवृद्धि करते है,,!

गर्मी के ये दिन अधिकांश परिंदे वंश बढ़ाते है, उनके अंडे के लिए जरूरी ताप मिलता है और चूजे निकने के लिए नमी भी. बारिश पिछड़ गई तो भी इस जलीय इलाके कई नमी काफी होगी.! जिससे उनके बच्चे अंडे में नहीं सूखते न निकलते समय छिलके से चिपकते ..!
वाह रहे कुदरत और तेरा निजाम ,,! जिनका कोई नहीं उनका रब होता है,जो इन जीवों को भी जरूरत पूरी करता है और महफूज रहने कई लिए अक्ल देता है ..!! हाँ एक और बात ये फोटो मुझे संजय शर्मा जी से मिली हैं जो इन दिनों राहुल सिंह जी के नक़्शे कदम पर कैमरा लिए चल रहे हैं..उनका आभार''!

Thursday 12 June 2014

विदेशी परिंदों की देश में बिक्री ..


वाईल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट केवल देश में पाए जाने वाले परिंदों के लिए लागू है,विदेशी पक्षी यदि किसी तरह कस्टम से पार हो गए तो उनकी बाजार में खरीद-फरोख्त हो सकती है.कानून इस पर लागू नहीं होता,यदि इसको पकड़ा भी जाये तो अदालत में मामला नहीं ठहरता, ये बात कल यहाँ TRAFFUIC india और अचानकमार टाइगर रिजर्व दवारा बिलासपुर में आयोजित 'कार्यशाला' में सामने आई,अब संसद में विदेशी परिंदों की खरीद फरोख्त रोकने नियम बनेगा ..! भारत में मलेशिया का काकातुआ तीस हजार की करीब और मकाऊ पैरट एक लाख रुपये के आसपास विक्रय होता है. जो बिलासपुर तक के बाजार में भी प्रदर्शित है ..नाट फार सेल लिखा है उसके पास ..! बड़ा अजीब है जिसकी तस्करी अवैध उसका प्रदर्शन और भारत मैं उसकी खरीद फरोख्त कैसे हो सकती है ..? 

वन्यप्राणी कानून 1972 में लागू हो गया और विदेशी परिंदे अब तक तस्करी कर लाये और ऊँची कीमत में बाज़ार में खरीदे बेचे जाते है,,! इनकी आड़ में देसी भी .! चलता है,,की मनासिंकता ने ये सब चलने दिया है,,न जाने कब कानून बनेगा और कब परिंदों को मुक्ति मिलेगी ..! विश्व में नौ हज़ार परिंदों की प्रजातियाँ है और भारत में तेरह सौ प्रजातियाँ पाई जाती है..! [पक्षी बचाईये,फोटो गूगल से]