Thursday 22 December 2016

कान्हा में रात्रि भ्रमण,संरक्षण विरुद्ध

दिन की छोड़ों अब वन्यजीवों को रात भी खलल पहुंचाया जाएगा, इसकी शुरुवात मुझे कान्हा नेशनल पार्क से दिख रही है। जब मैँ मध्यप्रदेश के वाइल्ड लाइफ बोर्ड में मेम्बर था, तब एलीफेंट से टाइगर शो बन्द कराया गया, लेकिन पर्यटन लाबी ने काफी जोर लगाया। तब यहां फिल्ड डायरेक्टर राजेश गोपाल जी रहे। बहरहाल वो बन्द है।
अब कान्हा,अक्टूबर में एक माह पहले खुल जाता है। जबकि क्लाइमेट, कान्हा और अचानकमार का कोई अलग नहीं।
कान्हा मे टाइगर का स्वभाव बदल रहा है। वन्यजीव को आदमी को देख भागना चाहिए या हमला करना चाहिए। पर ये फ्रेंडली हो गया है। मानव की उपस्थति का कोई नोटिस वो नहीं लेता। दिन रात जिप्सी सफारी और आदमी देख वह् बड़ा होता है। साल के पेड़ मुक्की रेज में मर रहे हैं, बोरर बढ़ रहा है। ये कुदरत के साथ इसी खिलवाड का नतीजा है। अचानकमार में ये सब नहीं, साल का जंगल अधिक बेहतर है।
कान्हा में दो गेट थे अब तीन है। अब रात को भी जंगल में घूमिये बस रूपये लगेंगे। क्या रूपये की खारित टाइगर और निशाचर वन्यजीवों के जीवन में खलल वन्यजीवन संरक्षण की भावना के प्रतिकूल नहीं ? इस सम्बन्ध में एमके रणजीत सिंह साहब, बिट्टू सहगल, वाल्मीकि थापर, बिलिंडा राइटस से जानकार लोगों की राय अहमियत रखती है। मुझे यकीन है की वो इस कृत्य को,कंभी उचित नहीं मानेगें।
पर्यटन जंगल में हो मगर, किन शर्तों पर,इस और धंधेबाज़ संस्थाओं के दोहन के बजाय संरक्षणवादियों की राय को महत्व मिले। इस मामले में केंद्रीय मंत्रालय, और माननीय सुप्रीम कोर्ट को पहल कर नए सिरे से गाइड लाइन जारी करनी होगी।। नहीं तो जंगल के और ज़ू के टाइगर में मौलिक अंतर खत्म हों जायेगा।
अगर पर्यटकों को रात पेट्रोलिंग के नाम पर जंगल के बफर जोन में भी ले जाया जाता है, तो वहां कोर जोन के टाइगर, और वन्य जीव ही होतो हैं, उनको नक्शे में खींची लकीरों का कोई ज्ञान नहीं होता। जू भी रात बन्द होते है और ये तो नेशनल पार्क है, जिसके टाइगर अचानकमार टाइगर रिजर्व तक आते हैं।

Thursday 15 December 2016

मधुमक्खी का छत्ता खाने वाला बाज





तीसरे दिन मेहनत  की रंग लॉई और 0rientel Haney- Buzzard को मधुमक्खी के छत्ते से शहद खाते कैमरे में कैद कर लिया गया ( कल का फॉलो अप)
आज सुबह Rahul SinghSanjay SharmaApurv Sisodia,के साथ बिलासपुर से रवाना हुए और अरपा नदी में सुर्खाब की फोटो लेने के बाद मौके पर पहुंचे।ये जगह थी, बिलासपुर- कोटा सड़क मार्ग में मोहन भाटा के बजरंग केडिया जी का आम का बगीचा, बस फार्म हॉउस के सामने युकिलिप्ट्स के ऊँचे पेड़ पर  एक बाज मधुमक्खी का छत्ता खाते मिला ही गया ।ये दुर्लभ मंजर था, इस छते को मघुमक्खी छोड़ कर उड़ चुकीं थी।दूसरा आसमान में ऊपर चक्कर लगा रहा था। हम सबने खूब फोटो ली। यह देखा गया कि बाज, छत्ते के मोम सहित शहद खा रहा था। उसने गले तक बेख़ौफ़ खाया,और विजेता की भांति डाल पर तन कर चलता हल्की उड़ान भर करीब उस डाल के पास जा बैठा, जहां नए छत्ते में, मघुमक्खी बैठी थीं।