दिन की छोड़ों अब वन्यजीवों को रात भी खलल पहुंचाया जाएगा, इसकी शुरुवात मुझे कान्हा नेशनल पार्क से दिख रही है। जब मैँ मध्यप्रदेश के वाइल्ड लाइफ बोर्ड में मेम्बर था, तब एलीफेंट से टाइगर शो बन्द कराया गया, लेकिन पर्यटन लाबी ने काफी जोर लगाया। तब यहां फिल्ड डायरेक्टर राजेश गोपाल जी रहे। बहरहाल वो बन्द है।
अब कान्हा,अक्टूबर में एक माह पहले खुल जाता है। जबकि क्लाइमेट, कान्हा और अचानकमार का कोई अलग नहीं।
कान्हा मे टाइगर का स्वभाव बदल रहा है। वन्यजीव को आदमी को देख भागना चाहिए या हमला करना चाहिए। पर ये फ्रेंडली हो गया है। मानव की उपस्थति का कोई नोटिस वो नहीं लेता। दिन रात जिप्सी सफारी और आदमी देख वह् बड़ा होता है। साल के पेड़ मुक्की रेज में मर रहे हैं, बोरर बढ़ रहा है। ये कुदरत के साथ इसी खिलवाड का नतीजा है। अचानकमार में ये सब नहीं, साल का जंगल अधिक बेहतर है।
कान्हा में दो गेट थे अब तीन है। अब रात को भी जंगल में घूमिये बस रूपये लगेंगे। क्या रूपये की खारित टाइगर और निशाचर वन्यजीवों के जीवन में खलल वन्यजीवन संरक्षण की भावना के प्रतिकूल नहीं ? इस सम्बन्ध में एमके रणजीत सिंह साहब, बिट्टू सहगल, वाल्मीकि थापर, बिलिंडा राइटस से जानकार लोगों की राय अहमियत रखती है। मुझे यकीन है की वो इस कृत्य को,कंभी उचित नहीं मानेगें।
पर्यटन जंगल में हो मगर, किन शर्तों पर,इस और धंधेबाज़ संस्थाओं के दोहन के बजाय संरक्षणवादियों की राय को महत्व मिले। इस मामले में केंद्रीय मंत्रालय, और माननीय सुप्रीम कोर्ट को पहल कर नए सिरे से गाइड लाइन जारी करनी होगी।। नहीं तो जंगल के और ज़ू के टाइगर में मौलिक अंतर खत्म हों जायेगा।
अगर पर्यटकों को रात पेट्रोलिंग के नाम पर जंगल के बफर जोन में भी ले जाया जाता है, तो वहां कोर जोन के टाइगर, और वन्य जीव ही होतो हैं, उनको नक्शे में खींची लकीरों का कोई ज्ञान नहीं होता। जू भी रात बन्द होते है और ये तो नेशनल पार्क है, जिसके टाइगर अचानकमार टाइगर रिजर्व तक आते हैं।
अब कान्हा,अक्टूबर में एक माह पहले खुल जाता है। जबकि क्लाइमेट, कान्हा और अचानकमार का कोई अलग नहीं।
कान्हा मे टाइगर का स्वभाव बदल रहा है। वन्यजीव को आदमी को देख भागना चाहिए या हमला करना चाहिए। पर ये फ्रेंडली हो गया है। मानव की उपस्थति का कोई नोटिस वो नहीं लेता। दिन रात जिप्सी सफारी और आदमी देख वह् बड़ा होता है। साल के पेड़ मुक्की रेज में मर रहे हैं, बोरर बढ़ रहा है। ये कुदरत के साथ इसी खिलवाड का नतीजा है। अचानकमार में ये सब नहीं, साल का जंगल अधिक बेहतर है।
कान्हा में दो गेट थे अब तीन है। अब रात को भी जंगल में घूमिये बस रूपये लगेंगे। क्या रूपये की खारित टाइगर और निशाचर वन्यजीवों के जीवन में खलल वन्यजीवन संरक्षण की भावना के प्रतिकूल नहीं ? इस सम्बन्ध में एमके रणजीत सिंह साहब, बिट्टू सहगल, वाल्मीकि थापर, बिलिंडा राइटस से जानकार लोगों की राय अहमियत रखती है। मुझे यकीन है की वो इस कृत्य को,कंभी उचित नहीं मानेगें।
पर्यटन जंगल में हो मगर, किन शर्तों पर,इस और धंधेबाज़ संस्थाओं के दोहन के बजाय संरक्षणवादियों की राय को महत्व मिले। इस मामले में केंद्रीय मंत्रालय, और माननीय सुप्रीम कोर्ट को पहल कर नए सिरे से गाइड लाइन जारी करनी होगी।। नहीं तो जंगल के और ज़ू के टाइगर में मौलिक अंतर खत्म हों जायेगा।
अगर पर्यटकों को रात पेट्रोलिंग के नाम पर जंगल के बफर जोन में भी ले जाया जाता है, तो वहां कोर जोन के टाइगर, और वन्य जीव ही होतो हैं, उनको नक्शे में खींची लकीरों का कोई ज्ञान नहीं होता। जू भी रात बन्द होते है और ये तो नेशनल पार्क है, जिसके टाइगर अचानकमार टाइगर रिजर्व तक आते हैं।