वन्यजीवों के संरक्षण की एक नई
सम्भावनों का एक नया दरवाजा खोलने की कोशिश अचानकमार-और कान्हा राष्ट्रीय उद्यान
के कारीडोर के रूप में की जा रही है, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के दवारा इस पर काम किया जा
रहा है और 84 किमी के इस दुर्गम राह पर वन्यप्राणी संरक्षण सप्ताह के अवसर पर इस
राह में पदयात्रा की जा रही है,आम तौर पर वन्यप्राणी सप्ताह किसी होटल के ऐसी
सभागार में आयोजित होता रहा, पर अब ये जंगल में पदयात्रा कर जमीनी और
कारगर काम किया जा रहा है. यदि ये कारीडोर घने जंगल के रूप में
विकसित हो गया तो दोनों पार्क के वन्यजीव एक से दूसरे पार्क में आने-जाने लगेंगे
और उनमें ‘इन ब्रीडिंग’ का आसन्न खतरा कभी
हद तक ख़त्म हो जायेगा..!
अब ये किसी से छिपा नहीं कि जंगल में वन्यजीवों
को कमी होती जा रही है, जिस कारण करीबी रक्त
संबंधितों के आपस में संतान पैदा करने की दशा निर्मित हो रही है, जिस वजह
हर नई पीढ़ी अनुवांशिक दोष ले कर जन्म लेती है, इसके निराकरण के लिए
नर-मादा के निकट रक्त सम्बन्धित न होना जरूरी हो चुका है. अचानकमार-कान्हा के बीच
आदिम गलियारा था,पर बसाहट और पेड़ों की कटाई की वजह इसका स्वरूप पहले सा नहीं रहा
है. खुडिया से शुरू हुई पदयात्रा
सलगी,पंडारापानी,सिन्दूरखार,पंडरीपानी,दलदली,देवगांव,के बाद बैला गाँव में सम्पन्न
आठ दिन में पूरी होगी.
पदयात्रा का प्रांरम्भ बिलासपुर के सीएफ ओपी यादव
ने हरी झंडी दिखा के किया,इसअवसर पर डीएफओ हेमंत पांडे,डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के
डा.चितरंजन दवे,उपेन्द्र दुबे,सुजीत सोनवानी,के अलावा,मीतूगुप्ता,विक्रमधर दीवान,सौरभ
पहाड़ी, बंशीलाल गौरहा,और दीगर प्रान्तों से आये वन्यजीव प्रेमी भी थे. सभी दुर्गम
पहाड़ी राह से पहले दिन कोई नौ किमी दूर बीजकछार तक जब पहुंचे तब वनवासियों ने
परम्परागत नृत्य से सबका स्वागत किया. पद्यात्रियों को विदाई दे कर अधिकारी और
पत्रकार संध्या वापस लौट आये..काफिला अगले दिन इस पड़ाव से आगे बढ़ गया..!
क्या होना चाहिए...
जहाँ जंगल विरल है और गाँव अधिक, वहां इस कारीडोर
के गाँव हटाकर, पेड़ लगाये जाएँ ताकि दोनों वन जुड़ इस सघन हो और गलियारे वन्यजीवों की आवाजाही हो..इसके लिए छतीसगढ़ और मध्यप्रदेश की सरकार को साथ काम करने
की जरूरत है..!
एक खतरा भी—
अगर अचानकमार में सींग वाले वन्य जीवों की संख्या
नहीं बढ़ी तो यहाँ के बाघ कान्हा न चले जाएँ..!
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