देश के विख्यात नेशनल पार्क कान्हा में साल बोरर का प्रकोप ऊंचे साल के पेड़ों को सुखा रहा है. दो दशक पहले साल बोरर के अटैक ने अरबों रुपयों के पेड़ों को काटने के लिए मजबूर कर दिया था. ये पेड़ इसलिए काटे गए थे, की बोरर और न पनपे और पेड़ों के साथ नष्ट हो जाए.
कान्हा टाइगर रिजर्व के पार्क का बड़ा एरिया सैलानियों की गतिविधियों से दूर रखा गया है, ताकि वन्य जीव कोलाहल से मुक्त रहे. फिर भी जो क्षेत्र खुला हैं उसमे सूखे साल वृक्षों की भरमार हो चुकी है. ये हरियाली की मखमल पर टाट का पैबंद है. अधिकाँश वृक्ष बीते साल के सूखे हो सकते हैं. लेकिन ऐसे वृक्ष भी कम नहीं जिनमे साल वृक्ष से निकाला गया इन बोरर कीड़ों के द्वारा निकाला गया पावडर इन वृक्षों के नीचे ढेर लग रहा है.{पहली फोटो में}
साल यानी सराई छत्तीसगढ़ का राजकीय वृक्ष है. ये सदाबहार है. यानी इसमें पतझड़ कब हुआ पता नहीं लगता. साल के जंगल में ठंडक और नमी बनी रहती है. साल के बारे में यह माना जाता है, कि यह सौ साल में बड़ा होता है और सौ साल तक खड़ा रहता है और सौ साल तक इसकी लकड़ी ख़राब नहीं होती. इसकी मजबूती के कारण रेलवे के स्लीपर साल वृक्ष से बनते रहे हैं, लेकिन इतना मजबूत पेड़ काले रंग के एक छोटे से कीड़े का शिकार हो कर सूख रहे हैं..!
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती. यदि इसी अवधारणा पर चला जाएगा तो आगे भी साल बोरर पेड़ों का खात्मा न किया गया तो नियम क़ानून का पालन करने वाले इसके चलते कुछ न कर पायेंगे और साल बोरर कान्हा को वीरान उजाड़ करता रहेगा. छत्तीसगढ़ राज्योदय के पहले कान्हा के फील्ड डायरेक्टर राजेश गोपाल ने साल बोरर पर काफी काम किया था और फिल्म बनाई थी. उनके अनुभव का लाभ कान्हा में आयी इस विपत्ति का निराकरण कर सकता है. क्योकि ऐसा लगता है कि खतरे की निर्धारित संख्या से अधिक साल के वृक्ष सूखते दिखाई दे रहे हैं.
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