मधुमक्खी और छोटे कीट के परागण से जंगल में नई वनसम्पदा का जन्म होता है.पर शहद के लिए दूर-दूर से मकरंद जमा करने वाली,मधुमक्खी के छत्ते जला कर धुआं दे कर परम्परागत तरीके से शहद जमा करने का तरीका गलत है.इसमें बदलाव लाने पर्ल इण्डिया का काम रंग लाने लगा है..
अमरकंटक की घाटी के कई गाँव के आदिवासी अब मित्रवत शहद जमा करने लगे हैं,ये रात पानी की फुहार छत्ते पर करते हैं,जिससे मधुमक्खी आक्रामक नहीं होती और एक तरफ हटाते जाती हैं,फिर संग्रहणकर्ता छत्ते के जिस हिस्से में शहद जमा होता है उसे काट लेते हैं,'पर्ल इण्डिया' के संचालक राजेश तिवारी ने बताया,बचे हिस्से में उनके बच्चे सुरखित रह जाते है..!इस तरह शहद के आलावा छत्ते से वो मोम भी हाथ आता है,जो सौन्दर्यप्रसाधनों में प्रयुक्त होने के कारण काफी महंगा होता है. ये सब मिलाता रहेगा आगे भी बस इस विधि के आपनाने से ..! जगल बचेगा तो हिरण बचेगे और हिरण बचेगा तो बाघ बचेंगे ..!
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