Saturday 20 April 2013

बाघ-तेदुआ खलनायक और शिकारी नायक था



कभी बाघ -तेंदुए खलनायक थे और शिकारी नायक ,पर आज इस भूल को प्रायश्चित करने का दौर है.
शिकार और शिकारी दोनों कम चालक न होते ,विशेषकर बाघ -
बाघ का शिकार -
घने जंगल का राजा -चपल शिकारी का शिकार आसन न होता. पर शिकारी के पास मारक बंदूक होती . 'गारा[पडवा] किसी ऐसी जगह बाँधा जाता जहाँ, बाघ के आने जाने की संभावित रह  हो ,इसके लिए पहले बाघ के पद चिन्ह खोजे जाते .शिकारी वहां के जानकार गाँव वालों से ये काम करता . फिर मजबूत पेड़ पर मचान बनाया जाता.रात शिकारियों  को मचान पर छोड़कर गाँव वाले वापस चले  जाते . दम साधे मचान पर एक से तीन शिकारी बैठ कर बाघ का इन्तेजार करते .. जानवरों के गले में बंधे जाने वाली घंटी शिकारी आपने पास रखे होते,जिस वो रह-रह कर बजाते. घंटी की आवाज सुन कार बाघ धोखा खाता की कोई मवेशी बिछड़ के जंगल में रहा गया है. और बाघ पडावे को मारने पहुँच जाता . बस मचान पर बैठे शिकारी पडावे  को मारने के बाद या पहले ही मौका देख गोली मार देते. एक के बाद दूसरा शिकारी तुरंत गोली दागता ताकि पहले की गोली सही जगह पर न लगी हो तो उसकी गोली लगा जाये , जंगल का राजा इस प्रकार कायरता से मारा जाता ,पर यदि वो घायल हुआ तो कुछ लम्हों में वो मचान पर झपट्टा मार शिकारी को खींच की कोशिश करता,कभी वो सफल भी हो जाता ..मगर ये कम ही होता.
 बाघ अगर घायल हो जंगल निकल जाये तो ऐसी दशा में शिकारी सुबह दल-बल उस स्थान पहुंचाते फिर जहाँ घायल बाघ का खून गिरा मिलाता वहां से आगे बढ़ते उसे खोज लेते.
 बाघ मरने की पुष्टि पत्थर मार कर की जाती ,यदि कोई हलचल दिखी तो एक गोली और मार दी जाती. बिलासपुर के दो इंग्लो मित्रों के साथ कुछ यूँ हुआ ,घायल बाघ ने उठ के एक को दबोच लिया,दोनों गुथमगुथा हो गये तब दूसरे शिकारी मित्र ने बाघ को बिलकुल करीब से गोली मार दोस्त की जान बचाई .ये करीब पचास साल पहले की बात है..दोनों दोस्त रेलवे में काम करते थे .
यदि पडावे को खाने बाघ के बजाय तेंदुआ पहुंचा तो वो भी शिकारी के कायराना हरकत में मारा जाता. गोली की आवाज सुन गाँव वाले आ जाते ,फिर शिकारी उनके लिए अगले दिन जंगली सूअर या हिरण मार कार देते .
शिकारियों का साथ गांववाले पैसे ,शराब के लिए देते ये भी हो सकता है कि बाघ या तेंदुए उनके मवेशी मार देते इसलिए वो शिकारियों को बाघ की खबर देते ..!
 यदि गाँव वालों को पता लगता की बाघ कहाँ है तो वो बीस-तीस की संख्या में मिल कर उसे हांकते और दूसरी तरफ छिपे शिकारी की और बाघ को पहुँच देते ,हांका दिन को होता ,ये हांकने वाले के लिए कम खतरनाक  न होता ,बाघ नाराज होकर उनपर भी टूट सकता था  या  फिर शिकारी की दागी गोली हांकने वालों में किसी को लगने की आशंका होती ..! पर इससे शिकारी को क्या उसका मकसद तो बाघ का शिकार होता था .

3 comments:

  1. शिकार का बढिया चित्रण। कभी बाघों का शिकार शान समझा जाता था।

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  2. ओह ... जान लेने के लिए कितने इंतजाम किये जाते थे ...

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  3. जंगल कानून और अस्तित्‍व का संघर्ष.

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