Sunday 21 April 2013

जंगल को विदेशी मूल की वनस्पति से खतरा


 घाटी की जैव विविधता पर लैंटाना और गाजर घास का हमला..
तपोभूमि अमरकंटक न केवल नर्मदा ,शोण,जुहिला नदी की उदगम स्थली ही नहीं है,अपितु प्रकृति की दुर्लभ जड़ी-बूटियों व जीव-जन्तुओ की शरण स्थली भी है.इसकी प्रचुरता को देखते हुए इस घाटी को अचानकमार-अमरकंटक बयोसिफयर घोषित किया गया है.लेकिन इसकी विविधता पर विदेशी मूल की दो वनस्पति संकट बन उभरी हैं.
इस घोर जंगली इलाके में कुछ ही सालों में गाजर घास और लैंटाना ने जिस प्रकार कब्ज़ा बढाया है,उससे दुर्लभ वनोषधियों के खात्मे का खतरा बना है..इस इलाके में कालीहल्दी, मुसली,बरहमी,जंगली प्याज़,वायविडंग,बछ,गुडमार,शंखपुष्पी,तिखुर,सी बनस्पति इनकी चपेट में आ गई है, जहाँ इनको फैलना था वहां गाजर- घास और लैंटाना पसर गया है. नदी,नालों व तराई में मीलों दूर तक वर्षाकाल में इसका फैलाव हो गया था. आने वाले हर साल गुणात्मक बढेगा. जिससे वन्यजीवों को मिलने वाला चारा कम होता जायेगा .
इन वनस्पति दैत्य के फैलाव को रोकने इस इलाके में कोई काम होते नही दिख रहा  है. देश के इस २६१०  वर्ग किमी के बयोसिफयर को 'यूनेस्को' से इस साल मान्यता मिली है, किन्तु गाजर घांस और लैंटाना का उन्मूलन न हुआ तो यहाँ की जैव विविधता तेजी से ख़त्म हो जाएगी.

1 comment:

  1. आप भी अमरकंटक को ही सोन का उद्गम मानते हैं, सोन बचरवार को नहीं?, आश्‍चर्य!

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