वसंत को पत्ते दान में दिए ,पर दिया दान व्यर्थ नहीं गया नए पत्ते बदले में साल को मिले साल (सरई) के पेड़ सदाबाहर होते हैं. इनमें पतझड़ कब आया ये पता भी नहीं लगता.अचानकमार के जंगल में साल के इन्ही पेड़ो के नीचे बाघ,तेंदुए ,बाईसन ,साम्भर ,चीतल से खरगोश तक इसके घने वितान के नीचे आश्रय पाते है.
साल के प्राकृतिक तौर से ही उगते हैं. नर्सरी लगा कर इनके पौधरोपण की योजना कारगर नहीं हो सकी है,इसके जंगल की ठंडक कुछ आधिक होती है, शरद ऋतु से पूरी ठंड तक इसके पेड़ों के रात टप-टप पानी टपकता है. कहा जाता है,साल का पेड़ सौ साल में खड़ा होता है.फिर सौ साल तक खड़ा रहता है और फिर काटने के बाद इसकी लकड़ी सौ साल तक पानी में भी नहीं सड़ती .मजबूत ये इतनी की पहले लकड़ी के स्लीपर रेलवे इसका ही बनती.आज भी नाव के लिए साल की लकड़ी प्रयुक्त होती है,,! साल के घने वन में नीचे धूप भी कम पहुँचती है. बाघ के लिए ये पसंदीदा जंगल हैं ,,कान्हा तथा बांधवगढ़ नेशनल पार्क में भी साल के सुंदर पेड़ो की शान देखते बनती है,.
शाल-सरई ''सौ साल खड़ा, सौ साल पड़ा, सौ साल सड़ा'', यानि कुल जीवन कम से कम तीन सौ साल.
ReplyDeletethanks sir
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