Wednesday 24 April 2013

जंगल का फूल बगिया की रौनक


 बचपन की याद बड़े होने तक बनी रहती है ,बशर्ते कोई खास बात हो.  मेरे पिताजी सीएल चड्डा ने  घर की बगिया में कलिहारी के पौधे को लगाया था. हर साल कंद से पौधा बरसात में फूट पड़ता और जाती बरसात में पीले फूल पर लाल रंग लिए अजब पंखुडिया वाले कुछ फूल खिलते.लड़कपन  में देखे इस सुंदर फूल की याद बनी रही.,,वर्षो बाद एक दिन मैं अपनी पुत्री प्रिया  महाडिक के साथ जंगल की छोटी सी  पहाड़ी पर चला रहा था. तभी इसका एक नन्हा सा पौधा दिखा,.पत्तियों की खूबी के कारण मैं उसे पहचान गया.फिर क्या था ,कार से टायर बदलने के कुछ औजारों से प्रिया ने उसे खोद का निकल लिया..अब  तीन सालों हर साल ये फूल हमारी बगिया की शोभा बढ़ने जाती हुई  बरसात में खिल जाता  है.बेलनुमा ये पौधा पत्तियों की घुमावदार नोक से आस-पास किसी सहारे को लेते हुए ऊपर बढ़ता है ,और चार-पांच फिट की ऊंचाई पर इसके मोहक फूल आने लगते हैं.फूल तो दस-बारह आते हैं पर बगिया में बहार आ जाती  है.
इसका वानस्पतिक नाम gloriosa superba है .औषधीय गुणों के अब  इसके प्राकृतिक रूप से मिलने में दिक्कत आने लगी है.संस्कृत में इसका नाम अग्निशिखा है . पीली पंखुडियो पर सुर्ख लाल के कारण ये नाम इस दिया था है.  फूल करीब दस दिन तक रहता है और अंतिम दिनों लाल राग का हो जाता है.जंगल से एकत्र कर इसके निर्यात पर प्रतिबन्ध लग है.'गठिया वात ,जटिल प्रसव,में या उपयोगी है,बालुई-पथरीली भूमि के इसकी खेती की जा सकती है..वर्षा में उगने और वर्षा में ही तैयार होने के कारण इसमें सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती .

2 comments:

  1. खूबसूरत, सूचनाप्रद.

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  2. ग्लोरी लिली - यह ओषधीय गुणों से युक्त तो है लेकिन उतना ही खतरनाक भी है. आत्म हत्या के लिए इसके जड़ों के रस का सेवन किया जाता था. इसका हर अंग जहरीला है यहाँ तक की उसकी बेहद खूबसूरत पंखुडियां भी. तामिलनाडु का यह राजकीय पुष्प है. अपने ब्लॉग पर फूल बनने की पूरी प्रक्रिया की तस्वीरें डाली हैं http://goo.gl/WTJ24w

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