Sunday 21 April 2013

छपरवा डाक बंगले में गोपाल शुक्ला ने पत्नी और बच्चों को फूंका


''अचानकमार टाइगर रिजर्व में गोपाल शुक्ल ने परिवार को फूंका'..

मैं गोपाल शुक्ला को कभी नहीं भूल सकता, सीएमडी कालेज में उसकी तूती बोलती,पढ़ने में उसका कोई सानी नहीं था.पर कोई नहीं जनता था कि  इस प्रतिभा का अंत अपनी पत्नी रानी और दो बच्चो को छापरवा के इस डाक बंगले में जला देने के बाद खुद जेल में जल कर आत्महत्या से होगा.ये डाक बंगला अभिशप्त माना जाने लगा ..!
गोपाल की बहन रेखा मेरे भाई प्रताप को राखी बंधतती  थी.सन १९७३ के आसपास छात्र आदोलन में हम कुछ छात्र जेल दाखिल थे. गोपाल और मैं यहाँ करीबी दोस्त हो गये..गोपाल ने कुछ कविता भी यहाँ लिखी.गोपाल का विवाह जगदलपुर में हो गया..! वो बैंक में अधिकारी बन गया..लगता सब ठीक है.
मैं पत्रकरिता में आ गया.नवभारत के बिलासपुर संस्करण में विनोद माहेश्वरी जी ने मुझे समन्वयक का पदभार सौंपा..! हम कुछ पत्रकार मित्र पीआरओ रविन्द्र पण्डया के साथ टूर पर गए थे .वापसी पर अचानकमार डाक बंगले में रात विश्राम तय था.पर शाम जब हम छपरवा पहुंचे तो चौक पर जीप रुकी तो मैंने देखा गोपाल इस डाक बंगले में परिवार के साथ था. मैं मिलने गया तो वो नाराज था.कह रहा था-अचानकमार डाक बंगले में उसका रात गुजरना तय था, पर पत्रकारों के कारण उसे छपरवा आना पड़ा.मैंने बात सँभालते कहा- गोपाल यहाँ की सुबह सुंदर होती है, चिड़िया का गाना सुनना..तभी पेट्रोल जेरिकेन में देख पूछ ये क्यों ? गोपाल ने कहा ''जीप जंगल विभाग की मिल जाएगी..मैं इसे भर कर जंगल घुमूँगा .हम पत्रकारों का दल अचानकमार डाक बंगले पहुंचा तो मैंने अपने मित्र अनिल पाण्डेय,हबीबखान,नथमल शर्मा से अनुमति ली कि  मैं  बिलासपुर घर जाना चाहता हूँ.
मैं किसी लिफ्ट की प्रतीक्षा में बेरियर पर आ गया.तभी मेजबान खोखर साहब बिलासपुर से पहुंचे , तो फिर उनके अनुरोध पर मैं वापस आ गया .रात रुकने की जगह कम थी,इसलिए  ये तय किया मैं और खोखर साहब सोने के लिए छपरवा डाक बंगले  चले जायेंगे.मगर  इस रात एक हादसे में मेरा हाथ टूट गया.अनिल पाण्डेय के साथ मैं  बिलासपुर इलाज के लिए आ गया.
सुबह खबर मिली की गोपाल शुक्ला ने अपनी पत्नी रानी और दोनों बच्चों को जला कर मार डाला है. मुझे बेहद अफसोस हुआ, पर यदि मैं  रात छपरवा रुका होता तो गोपाल दरवाजा बाहर से बंद कर हमें भी बचे पेट्रोल से  जला देता,जिससे  कोई सक्ष्य न बाकी रहे. ये रहस्य बना रहा कि गोपाल ने परिवार को क्यों जला दिया.
      विचाराधीन कैदी के रूप में गोपाल जिला जेल में कुछ माह बंद  रहा.फिर एक दिन खबर मिली गोपाल शुक्ला ने आग लगा ली है ,मैं जिला अस्पताल पहुंचा मेरी आवाज गोपाल पहचान गया ,झुलसने के कारण पलके चिपक चुकी थी..मैंने गोपाल से कहा- तू ज्यादा नहीं  जला है, तू बच जायेगा''..गोपाल बोला,जिनके लिए जीता था ,वो ही नहीं रहे, तो मैं क्या करूंगा जी कर..और कुछ देर बाद वो अपने परिवार से 


मिलने सदा के लिए ये लोक छोड़ कर चला गया .इसके साथ ही एक प्रतिभा का अंत हो गया.
इस हादसे के बाद छापरवा के डाक बंगले में रात विश्राम के लिए कोई न ठहरता ,पुरा वेत्ता राहुल सिंह इसके बाद पहले व्यक्ति थे जिन्होंने रात वहाँ विश्राम किया. रंग पेंट के बाद भी टाइगर रिजर्व का ये डाक बंगाल अभिशप्त माना जाता है ,,!

1 comment:

  1. जी, मुझे ध्‍यान आता है यह सन 2001 की कोई तारीख थी, जब मैं इस रेस्‍ट हाउस में रुका था, इसकी मरम्‍मत के बाद तब तक नये रंग-रोगन की गंध थी यहां.

    ReplyDelete